नीतीश बाबू के सपनों में झाड़ू घूमती रही, पर दरभंगा के रामभद्रपुर में झाड़ू कभी आई ही नहीं: पंचायत की अपशिष्ट इकाई में ताले और घास के बीच सिसकती 'हर घर कचरा उठाव योजना' पढ़िए हमारी विशेष रिपोर्ट जो खोलती है सुशासन की पोल!
जब नीतीश कुमार ने बिहार के हर पंचायत को स्वच्छता से जोड़ने का संकल्प लिया था, तब लगा था कि गाँव की गलियों में भी स्वच्छ भारत की सुगंध बहेगी। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्वच्छ भारत’ का नारा दिया था, तब कल्पना की गई थी कि देश के हर कोने से गंदगी का अंत होगा और सभ्यता की असली पहचान सफाई हर गली-मोहल्ले में दिखेगी। लेकिन दरभंगा जिला के बहादुरपुर प्रखंड अंतर्गत रामभद्रपुर पंचायत में स्थित "ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन इकाई" का दृश्य इन तमाम कल्पनाओं पर एक गंदगी भरी चादर डाल देता है. पढ़े पुरी खबर.......

बहादुरपुर (दरभंगा): जब नीतीश कुमार ने बिहार के हर पंचायत को स्वच्छता से जोड़ने का संकल्प लिया था, तब लगा था कि गाँव की गलियों में भी स्वच्छ भारत की सुगंध बहेगी। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्वच्छ भारत’ का नारा दिया था, तब कल्पना की गई थी कि देश के हर कोने से गंदगी का अंत होगा और सभ्यता की असली पहचान सफाई हर गली-मोहल्ले में दिखेगी। लेकिन दरभंगा जिला के बहादुरपुर प्रखंड अंतर्गत रामभद्रपुर पंचायत में स्थित "ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन इकाई" का दृश्य इन तमाम कल्पनाओं पर एक गंदगी भरी चादर डाल देता है।
जब तस्वीरें चीखती हैं और ताले चुप नहीं रहते: रामभद्रपुर पंचायत में क्रांतिस्तंभ और एमबी कॉलेज ऑफ एजुकेशन के बीच उत्तर दिशा में, बड़ी उम्मीदों और घोषणाओं के बीच खड़ा यह भवन आज ताले में बंद पड़ा है। गेट पर लटका ताला कोई साधारण जंग लगा लोहे का तुकड़ा नहीं, बल्कि बिहार सरकार के ‘सपनों की स्वच्छता’ पर लगे ताले की प्रतीक है। इसके आगे उगी हुई घास, इस बात की गवाही देती है कि यहाँ न तो किसी सफाईकर्मी के कदम पड़े, न किसी गाड़ी की आहट हुई। सिर्फ कागज़ों पर योजना दौड़ी ज़मीन पर नहीं! क्या यही है 'हर घर कचरा उठाव' का यथार्थ?
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‘हर घर कचरा उठाव योजना’ नाम कितना सुगंधित, पर क्रियान्वयन उतना ही दुर्गंधित। पंचायत के कुल 11 वार्ड हैं। हर घर में सूखा और गीला कचरे के लिए डब्बा देने की बात कही गई थी। लेकिन आज तक किसी भी घर में न कोई डब्बा पहुँचा, न कोई गाड़ी आई और न ही कोई सफाई कर्मी दिखा। यह योजना नहीं, यह योजनाबद्ध उपेक्षा है।
"सिर्फ ईंट-पत्थर खड़ा किया गया, सेवा नहीं!" स्थानीय निवासियों का आक्रोश: जब हमारे संवाददाता ने स्थानीय लोगों से संवाद किया, तो जनाक्रोश साफ झलकता था। "सिधौली पंचायत को देखिए! वहाँ तो 3-4 साल पहले से घर-घर कचरा उठ रहा है। लेकिन हमारे रामभद्रपुर में केवल नाम है, काम नहीं।"
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"यहाँ तो योजना का बजट आया, बिल्डिंग बनी, लेकिन उसके बाद सबकुछ ठप्प!"
"ना कोई कचरा उठाव गाड़ी, ना सफाईकर्मी, और ना ही घरों में डस्टबिन!"
ये शब्द केवल गुस्से के नहीं, बल्कि आशाओं के अपमान से जन्मे थे।
ताले में बंद सरकार, और खुले में घूमती गंदगी: ये ताला सिर्फ एक ईकाई को बंद नहीं करता, यह विकास के उस झूठे नाटक को भी जड़ से बंद करता है जो प्रेस विज्ञप्तियों में दिखता है। रामभद्रपुर पंचायत, जो कि जिला मुख्यालय से मात्र 10-11 किलोमीटर और प्रखंड से 7-8 किलोमीटर दूर है, वहाँ की यह स्थिति चौंकाती है। सोचिए, फिर दूरदराज के गाँवों का क्या हाल होगा?
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'सुशासन बाबू' की फाइलें धूल खा रही हैं: बिहार में 'सुशासन बाबू' के नाम से मशहूर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार की योजनाएँ जब ज़मीनी हकीकत से टकराती हैं, तो धूल ही उड़ती है विकास नहीं। रामभद्रपुर की फाइलें शायद पटना सचिवालय के किसी कोने में धूल खा रही होंगी। उन्हें उठाने की न किसी को फुर्सत है, न ज़िम्मेदारी का बोध।
काग़ज़ पर जिंदा, ज़मीन पर मृत ये है रामभद्रपुर मॉडल: इस केंद्र के बाहर लगे बोर्ड पर रंग-बिरंगे स्लोगन, दीवार पर स्वच्छता के चित्र और शब्दों की सजावट बता रही है कि काग़ज़ पर काम ज़रूर हुआ है। पर जमीनी हकीकत साफ़ कहती है कि यह एक "स्लोगन-संचालित विकास" है, जहाँ सिर्फ रंग है गंध नहीं मिटाई गई।
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सरकार को चाहिए: ताले नहीं, तालमेल!
अब यह ज़िम्मेदारी जिला प्रशासन और पंचायती राज विभाग की है कि वे इस घास के जंगल में बंद पड़ी योजना को फिर से ज़िंदा करें। वरना यह भवन जल्द ही 'स्वच्छता के स्मारक' के बजाय 'सरकारी उपेक्षा की कब्र' में तब्दील हो जाएगा। रामभद्रपुर पंचायत आज एक आईना है जिसमें सरकार को अपना चेहरा देखना चाहिए। यह ताला उस ताले की शुरुआत है जो आम जनता के भरोसे पर लग चुका है। अब प्रशासन चाहे तो इसे चाबी से खोल दे, या समय की जंग इस पर हमेशा के लिए जड़ जमा दे।