दरभंगा राजकिला की गोद में गूंजते जयकारे और मातम की टीस रामबाग कंकाली मंदिर की नवरात्र साधना, शाही परंपरा और पुजारी के बलिदान की व्यथा कथा को ‘मिथिला जन जन की आवाज’ ने कलम से जिया
मिथिला की धरती सदियों से शक्ति साधना और भक्ति की भूमि रही है। यहां शक्ति को मातृत्व का स्वरूप मानकर पूजा जाता है, तो कहीं तांत्रिक विधियों से जगत जननी की आराधना कर सिद्धियां प्राप्त की जाती हैं। गांव-गांव, नगर-नगर में फैले मंदिर और देवी स्थान इस परंपरा की सजीव पहचान हैं। इन्हीं में से एक, रामबाग किले के भीतर स्थित कंकाली मंदिर है, जो मिथिला की आस्था का विराट केंद्र है. पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा। मिथिला की धरती सदियों से शक्ति साधना और भक्ति की भूमि रही है। यहां शक्ति को मातृत्व का स्वरूप मानकर पूजा जाता है, तो कहीं तांत्रिक विधियों से जगत जननी की आराधना कर सिद्धियां प्राप्त की जाती हैं। गांव-गांव, नगर-नगर में फैले मंदिर और देवी स्थान इस परंपरा की सजीव पहचान हैं। इन्हीं में से एक, रामबाग किले के भीतर स्थित कंकाली मंदिर है, जो मिथिला की आस्था का विराट केंद्र है।
इतिहास और आस्था का अद्भुत संगम: कंकाली मंदिर का इतिहास उतना ही पुराना और गौरवशाली है जितनी कि मिथिला की धरती। वर्ष 1802 में यहां माता कंकाली की प्रतिमा स्थापित की गई थी। कहा जाता है कि स्थापना के क्षण से ही इस मंदिर की आभा ने लोगों को अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया। मंदिर के गर्भगृह में विराजमान मां की प्रतिमा ऐसी तेजस्विता बिखेरती है कि दर्शन मात्र से श्रद्धालु का मन आत्मिक शांति से भर उठता है। 1934 के भयंकर भूकंप ने जब दरभंगा की धरती को हिला दिया, तब इस मंदिर का पुराना ढांचा भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। लेकिन आस्था इतनी गहरी थी कि भूकंप की राख से ही मंदिर को पुनः नव्य स्वरूप मिला। इसके बाद जो भव्य और विशाल संरचना सामने आई, वह आज भी भक्तों को अपने दिव्य आकर्षण में बांधे रखती है।
शाही परंपरा और तांत्रिक उपासना: लंबे समय तक इस मंदिर में पूजा-अर्चना केवल दरभंगा राज परिवार की ओर से ही होती थी। आम लोगों के लिए यह स्थान एक रहस्यमयी आस्था का केंद्र था। लेकिन धीरे-धीरे समय बदला, और अब यह मंदिर जनसाधारण के लिए खुला हुआ है। इसके बावजूद, संचालन और व्यवस्था की जिम्मेदारी आज भी राज परिवार के हाथों में है। यहां नवरात्र के दौरान पूजा की विशेषता तांत्रिक विधि है। कलश स्थापना से लेकर नवमी तक प्रतिदिन बलि की परंपरा यहां निभाई जाती है। बलि की यह प्रथा राजसी विरासत और तांत्रिक साधना का संगम है। जब ढोल-नगाड़ों की गूंज के बीच बलि दी जाती है, तब वातावरण में जो कंपन उठता है, वह श्रद्धालुओं को रोमांचित कर देता है। भक्तों का विश्वास है कि इस विधि से मां की कृपा अपार रूप से बरसती है।
मां की कृपा और भक्तों का विश्वास: मंदिर के पुजारी आयुष वैभव उर्फ गोलू बताते हैं कि मां कंकाली की शक्ति अपरंपार है। यहां आने वाला कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। मां हर कष्ट दूर करती हैं और हर मनोकामना पूरी करती हैं। यही कारण है कि नवरात्र के दिनों में यहां उमड़ने वाली भीड़ किसी मेले का रूप ले लेती है। हर चेहरे पर श्रद्धा, हर आंख में उम्मीद और हर मन में मां के चरणों में समर्पण का भाव झलकता है।
एक त्रासदी जिसने मंदिर को रुला दिया: लेकिन इस मंदिर का इतिहास सिर्फ आस्था और परंपरा तक सीमित नहीं है। इसमें दर्द और बलिदान की त्रासद गाथा भी जुड़ी है। 14 अक्टूबर 2021 का दिन कंकाली मंदिर और दरभंगा की जनता कभी नहीं भूल सकती। इसी दिन मंदिर के मुख्य पुजारी राजीव कुमार झा की निर्मम हत्या कर दी गई थी। एक मामूली मोबाइल छीनने के विवाद ने इतना भयावह रूप ले लिया कि अपराधियों ने गोली चलाकर एक पुजारी की जान ले ली। उस दिन मां के दरबार ने खून देखा, श्रद्धालुओं की आंखों ने आंसू बहाए और पूरा दरभंगा शोक में डूब गया। अदालत ने इस जघन्य कृत्य के दोषियों को आजीवन कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाई, लेकिन मां की सेवा में जीवन समर्पित करने वाले राजीव कुमार झा अब कभी लौटकर नहीं आ सकते।
पुत्र ने संभाली मां की सेवा: राजीव कुमार झा के बड़े बेटे ने पिता की जगह मां की सेवा का दायित्व संभाला है। उनके हाथों से जब आरती उठती है, तो श्रद्धालुओं को लगता है कि पिता की आत्मा इसी सेवा में जीवित है। यह सिर्फ एक धार्मिक परंपरा का निर्वहन नहीं, बल्कि आस्था और जिम्मेदारी का ऐसा संगम है, जो पुत्र को पिता का उत्तराधिकारी ही नहीं, बल्कि मां का आजीवन सेवक बना देता है।
आस्था की धड़कन बना कंकाली मंदिर: आज नवरात्र के दिनों में जब पूरे मिथिला की धरती देवी गीतों और ढोल की थाप से गूंजती है, तब रामबाग का कंकाली मंदिर श्रद्धालुओं की धड़कन बन जाता है। यहां एक ओर तांत्रिक साधना और बलि की परंपरा निभाई जाती है, तो दूसरी ओर भक्तों की आंखों में मां के प्रति अथाह विश्वास झलकता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां आकर हर भक्त अपने दुःख का भार मां के चरणों में रख देता है और हल्के मन से लौटता है। मां कंकाली का आशीर्वाद जैसे हर पीड़ा का मरहम है। रामबाग कंकाली मंदिर सिर्फ ईंट और पत्थरों से बना एक धार्मिक स्थल नहीं है। यह मिथिला की शाश्वत आस्था, शाही परंपरा, तांत्रिक साधना और बलिदान का जीवंत प्रतीक है। यहां का हर पत्थर, हर घंटी, हर दीपक मां की शक्ति और भक्तों की निष्ठा का साक्षी है। नवरात्र में जब इस मंदिर का वातावरण आरती, भजन और जयकारों से गूंजता है, तो लगता है मानो स्वयं देवी कंकाली अपनी संतानों के बीच अवतरित होकर आशीष दे रही हों। यही वह स्थान है, जहां आस्था दुख को ढक लेती है, भक्ति जीवन को अर्थ देती है और मां की ममता हर हृदय को अपने आंचल में समेट लेती है।