डीएमसीएच की दहला देने वाली दुपहरी का न्यायालय में पुनर्जन्म: राहुल कुमार की दिनदहाड़े गोली मार हत्या, तन्नू प्रिया के प्रेम पर पिता का प्रतिशोध… और अब सत्र न्यायाधीश शिव गोपाल मिश्रा की कठोर अदालत ने हत्यारोपी प्रेम शंकर झा की जमानत याचिका खारिज कर दिया पढ़ें कैसे प्रेम, अहंकार और रक्त की इस त्रासदी ने पूरे दरभंगा को शोक में डुबो दिया
मिथिला की सुबहें सामान्यतः कोमल होती हैं पर आज का दिन शहर के ह्रदय को एक बार फिर वैसा ही शोक-संवेग दे गया, जैसा 5 अगस्त 2025 को डीएमसीएच की दहलीज़ पर हुआ था। सत्र न्यायाधीश शिव गोपाल मिश्रा की अदालत ने उस हत्याभियोगी पिता, प्रेम शंकर झा जिसने अपनी बेटी की पसन्द, उसकी स्वतंत्रता और उसके प्रेम को “अपमान” समझकर रक्त में डुबो दिया था की नियमित जमानत याचिका कठोर शब्दों में खारिज कर दी है. पढ़े पूरी खबर......
दरभंगा। मिथिला की सुबहें सामान्यतः कोमल होती हैं पर आज का दिन शहर के ह्रदय को एक बार फिर वैसा ही शोक-संवेग दे गया, जैसा 5 अगस्त 2025 को डीएमसीएच की दहलीज़ पर हुआ था। सत्र न्यायाधीश शिव गोपाल मिश्रा की अदालत ने उस हत्याभियोगी पिता, प्रेम शंकर झा जिसने अपनी बेटी की पसन्द, उसकी स्वतंत्रता और उसके प्रेम को “अपमान” समझकर रक्त में डुबो दिया था की नियमित जमानत याचिका कठोर शब्दों में खारिज कर दी है। लोक अभियोजक अमरेन्द्र नारायण झा के शब्द आज भी दिल में छुरी की तरह उतरते हैं यह हत्या मात्र एक युवक की हत्या नहीं थी; यह एक युग के आधुनिक होने की कोशिश पर प्रहार था।

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प्रेम से निकला बारूद और गिर पड़ा एक सपना: डीएमसीएच के बीएससी नर्सिंग के छात्र राहुल कुमार एक साधारण, सपनों से भरा, भविष्य के सफेद एप्रन में मानवता का स्पर्श खोजता हुआ युवा… उसकी शादी तन्नु प्रिया से हुई एक ऐसी शादी जो प्रेम का उत्सव थी, पर पिता के क्रोध का अपराध बन गई।

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5 अगस्त 2025। वह काला दिन, जब सूर्यप्रकाश भी भय से सिकुड़ गया था। दिनदहाड़े, अस्पताल परिसर में, जहाँ जीवन बचाए जाते हैं वहीं एक पिता ने अपनी ही पुत्री के पति को गोली मार दी। गोली की आवाज़ नहीं थी वह एक युग-मन के चीत्कार जैसा था। राहुल वहीं गिर पड़ा। उसकी सांसें क्षणभर में शांत हो गईं और उसके साथ मर गया एक परिवार का भविष्य, एक छात्रा का विश्वास, एक समाज की विवेकशीलता। घटनास्थल से दो देसी कट्टे, जिंदा गोली और 52,000 रुपये बरामद हुए थे। जांचोपरांत शस्त्र कारगर पाए गए मतलब हत्या की साजिश, इच्छा और तैयारी सब कुछ स्पष्ट थी।

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न्यायालय में गूंजता दर्द: आज जब अदालत ने जमानत याचिका खारिज की तो यह केवल कानूनी निर्णय नहीं था। यह उन हजारों आँखों का न्याय था, जो उस दिन डीएमसीएच के फर्श पर फैले रक्त को देख कर कांप उठी थीं। अदालत ने कहा समाज के अंदर भय की स्थिति उत्पन्न करने वाले अपराध को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह वाक्य आज दरभंगा की गलियों में शोकगीत की तरह बह रहा है।

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एक सप्ताह तक कांपता रहा डीएमसीएच छात्रों का आक्रोश और चीखें: राहुल की हत्या के बाद, डीएमसीएच के बीएससी नर्सिंग छात्रों ने एक सप्ताह तक जो आंदोलन किया वह सिर्फ प्रदर्शन नहीं था; वह एक पूरे युवा समुदाय की आत्मा का रोदन था। वे तख्तियाँ लेकर नहीं बल्कि आँखों में प्रतिशोध, होंठों पर न्याय की पुकार और हाथों में कांपता हुआ डर लेकर सड़क पर उतरे थे। उन्होंने हत्यारोपी को पकड़कर वहीं पीटा यह हिंसा नहीं थी, यह क्रुद्ध समाज का विस्फोट था। पुलिस ने आरोपी को अभिरक्षा में लिया और उसकी हालत इतनी खराब थी कि इलाज डीएमसीएच से पीएमसीएच तक करना पड़ा।

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पूरा जिला स्तब्ध और आज फिर वही सन्नाटा: उस दिन का दृश्य आज भी लोग भूल नहीं पाए। अस्पताल की दीवारों पर छिटका हुआ रक्त ईलाज की जगह मृत्यु की छाया और हर ओर फैला एक ही प्रश्न क्या एक पिता का सम्मान उसकी बेटी की खुशी से बड़ा है? आज जमानत रद्द होने के बाद शहर फिर उसी घाव को कुरेद रहा है।

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न्यायालय ने दो और जमानतें की खारिज संदेश साफ है: अपराध का अंत, दोषियों की निराशा: सत्र न्यायाधीश मिश्रा की अदालत ने दो और प्रकरणों में जमानत याचिकाएँ खारिज कर दीं
1. रामवृक्ष यादव उर्फ रुदल यादव केवटी थाना कांड संख्या 238/25 (वाहन चोरी)
2. सुगंध पासवान बहादुरपुर थाना कांड संख्या 387/25 (जानलेवा हमला)
अब दोनों को जमानत की इच्छा होने पर पटना हाईकोर्ट जाना होगा। यह निर्णय बताता है कि मिथिला की धरती अपराध को अब उतनी आसानी से क्षमा नहीं करेगी। न्यायालय का यह रुख आने वाले अपराधियों के लिए चेतावनी है दरभंगा अब सोया शहर नहीं; यह न्याय की गर्जना से भरा हुआ जिला है। इस पूरी घटना में सबसे ज्यादा टूट गई है तन्नु प्रिया। एक तरफ पति की लाश, दूसरी तरफ पिता की गिरफ्तारी और इनके बीच खड़ी उसकी जिंदगी… उसका दर्द शब्दों में नहीं बंधता। यह समाचार केवल एक हत्या का वृत्तांत नहीं यह समाज को झकझोर देने वाला दर्पण है, जिसमें हम अपना क्रूर चेहरा देखते हैं जहाँ बेटी की पसंद अपराध है, जहाँ प्रेम का रंग खून से ढँक जाता है, जहाँ अस्पताल की दहलीज़ पर भी इंसानियत असहाय रह जाती है। और आज अदालत का निर्णय, उसी टूटे मन पर मरहम की पहली बूंद जैसा है।अगर आप सच्ची, निष्पक्ष और हृदय को हिला देने वाली रिपोर्टिंग पढ़ते हैं तो इस समाचार को आगे बढ़ाएँ। हमारे चैनल मिथिला जन जन की आवाज से जुड़कर ऐसी हर खबर की स्याही में अपनी चेतना मिलाएँ। क्योंकि यह सिर्फ खबर नहीं यह एक युग का पछतावा है।
