डायगर की धार, करमगंज का कैफ और सैदनगर की सन्नाटी बहादुरपुर की शाम जब इंसानियत को रौंदा गया और डीएमसीएच की सफेद चादर पर लहू से लिखा गया एक युवक का अधूरा जीवन-संग्राम
शुक्रवार की शाम बहादुरपुर की हवाओं में कुछ बेचैनी थी। बल्लोपुर की गलियों में एक डरावनी खामोशी पसरी हुई थी और सैदनगर की सड़कों पर सन्नाटा चीख रहा था। यह शाम किसी के लिए यूं ही गुजर गई होगी, पर करमगंज के मो. कैफ के लिए यह ज़िंदगी और मौत की सीमा-रेखा बन गई एक ऐसा पल, जब युवावस्था की सारी ऊर्जा, सारे सपने, और जीवन की हँसी डायगर की एक वार में सिसकने लगे। मो. कैफ, लहेरियासराय थाना क्षेत्र के करमगंज मुहल्ले का एक सादा-सलोना लड़का, शुक्रवार की शाम शोभन जाने के लिए निकला था। ना कोई आहट, ना कोई अंदेशा. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा: शुक्रवार की शाम बहादुरपुर की हवाओं में कुछ बेचैनी थी। बल्लोपुर की गलियों में एक डरावनी खामोशी पसरी हुई थी और सैदनगर की सड़कों पर सन्नाटा चीख रहा था। यह शाम किसी के लिए यूं ही गुजर गई होगी, पर करमगंज के मो. कैफ के लिए यह ज़िंदगी और मौत की सीमा-रेखा बन गई एक ऐसा पल, जब युवावस्था की सारी ऊर्जा, सारे सपने, और जीवन की हँसी डायगर की एक वार में सिसकने लगे। मो. कैफ, लहेरियासराय थाना क्षेत्र के करमगंज मुहल्ले का एक सादा-सलोना लड़का, शुक्रवार की शाम शोभन जाने के लिए निकला था। ना कोई आहट, ना कोई अंदेशा। लेकिन बल्लोपुर की गलियों में पहले से ताक में बैठे दरिंदों ने उसे घेर लिया। न जाने क्या पुराना रंजिश थी या किसी सांप्रदायिक विवाद की भड़ास पर उन हाथों ने इंसान नहीं, एक जानवर समझकर कैफ को पीटा।
पहले लाठियों से उसे अधमरा किया गया, फिर उसके शरीर को चीरा गया डायगर से। और जब लगा कि उसके शरीर में कोई प्रतिरोध बाकी नहीं रहा, तब उन दरिंदों ने उसे फेंक दिया हाँ, फेंक दिया सैदनगर की उस वीरान एजेंसी के पीछे, जहां दिन ढले परिंदे भी लौटना बंद कर देते हैं।
डीएमसीएच की वो रात जब हर सांस के साथ लड़ रहा था एक बेटा, एक दोस्त, एक नागरिक: स्थानीय लोगों की सजग निगाहें न होतीं, तो शायद मो. कैफ की कहानी, एक अगली लाश बनकर अगले दिन की हेडलाइन में बदल जाती। पर कुछ इंसानों की मानवीयता अब भी ज़िंदा थी। घायल अवस्था में पड़े कैफ को देखकर लोगों ने उसे तुरन्त डीएमसीएच पहुंचाया। उस वक़्त उसकी सांसें थकी हुई थीं, और आंखें जैसे सवाल कर रही थीं "क्यों?"
डीएमसीएच के इमरजेंसी वार्ड में उसकी नब्ज थमी-थमी चल रही थी। ऑक्सीजन मास्क के पीछे उसकी सांसें गिनती में बदल चुकी थीं। चिकित्सकों के चेहरों पर संजीदगी थी, और वार्ड के बाहर भीड़ में डर, ग़ुस्सा और आंसुओं का समंदर बह रहा था।
मोहल्ला टूटा, पर एकजुट हुआ... रियासत अली टिंकू, सरवर कमाल, आरसी अंसारी और कैफ की पुकार: घटना की खबर जैसे ही फैली, करमगंज के लोगों की भीड़ डीएमसीएच पहुंच गई। मोहल्ले के पार्षद रियासत अली टिंकू हों या समाजसेवी सरवर कमाल, हर कोई गुस्से और दुख से कांप रहा था। लोगों के चेहरों पर दो सवाल साफ लिखे थे "हम इतने असुरक्षित क्यों हैं?" और "हमारे बच्चों की जान इतनी सस्ती क्यों?"
आरसी अंसारी ने आंखों में आंसू लिए कहा "कैफ शरीफ और मिलनसार लड़का है। किसी से दुश्मनी नहीं रखता। अगर इस पर हमला हो सकता है तो हम सब भी सुरक्षित नहीं है।"
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डायगर की धार से ज़ख्मी कैफ की खामोश चीख क्या प्रशासन सो रहा है?
हमलावरों ने न सिर्फ कैफ के शरीर को लहूलुहान किया, बल्कि कानून और व्यवस्था पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया। यह हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि सामूहिक सुरक्षा की भावना पर हमला था। और अफ़सोस कि इस पूरी घटना में अब तक पुलिस की चुप्पी गूंज की तरह सैदनगर की गलियों में तैर रही है। क्या बहादुरपुर थाना सिर्फ FIR दर्ज करने का इंतजार कर रहा है? क्या अपराधी इतने बेखौफ हो गए हैं कि दिन ढलते ही किसी को भी उठाकर अधमरा कर दें?
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मोहर्रम की परछाई या पुरानी रंजिश? संभावनाओं का जाल और प्रशासन की जिम्मेदारी: स्थानीय लोगों का अंदेशा है कि मोहर्रम के दौरान कैफ का किसी से कोई विवाद हुआ होगा। संभव है उसी को लेकर यह हमला किया गया हो। लेकिन क्या यह काम किसी एक हाथ का था या इसमें कोई संगठित गिरोह शामिल है?
प्रशासन को तुरंत इस दिशा में जांच तेज करनी होगी। CCTV फुटेज खंगालना, बल्लोपुर से सैदनगर तक की गतिविधियों की पड़ताल करना, और सबसे महत्वपूर्ण घायल कैफ का बयान सुरक्षित करना।
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एक माँ की टूटती उम्मीदें और मोहल्ले की दुआएं: जब कैफ की मां अस्पताल पहुंचीं, तो उन्होंने बस एक ही शब्द कहा "मेरे बेटे को बचा लो, खुदा के लिए..." उनकी आवाज़ उन तमाम माँओं की आवाज़ थी, जो अपने बच्चों को यह सोचकर घर से बाहर भेजती हैं कि वो सुरक्षित लौटेंगे। कैफ की हालत अब भी नाजुक बनी हुई है। चिकित्सकों ने स्पष्ट कर दिया है कि स्थिति बेहद संवेदनशील है। जरूरत पड़ी तो पटना रेफर किया जा सकता है।
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ये सिर्फ खबर नहीं, ये एक चेतावनी है... जो आज कैफ के साथ हुआ, वो कल किसी और के साथ हो सकता है। यह वक्त है जब दरभंगा प्रशासन को जगना होगा, सिर्फ अखबारों में बयान देने से नहीं, जमीनी कार्रवाई से। बहादुरपुर थाना को चाहिए कि इस घटना में शामिल हर व्यक्ति को खोज निकाले चाहे वह कोई भी हो, किसी भी वर्ग या जाति का हो। सैदनगर की उस गली में, जहाँ कल एक युवक लहूलुहान पड़ा था वहां आज भी कुछ खून की बूंदें पड़ी होंगी। वो सिर्फ खून नहीं हैं, वो इंसाफ की पुकार है। और जब तक उन बूंदों का जवाब नहीं मिलेगा, दरभंगा की आत्मा चैन से नहीं सो पाएगी।