जब फेसबुक ने छीना राजू कुमार का सपना और दरभंगा साइबर थाना बना उम्मीद की आख़िरी डोर: ₹8.5 लाख की साइबर ठगी के बाद न्यायालय के आदेश पर ₹2.83 लाख की राशि हुई वापस, शेष की वापसी प्रक्रिया में

वक़्त बदल रहा है, और बदलते वक़्त के साथ ठगों की चालें भी बदल रही हैं। अब लाठी और कट्टा नहीं, मोबाइल और माउस से चुराए जा रहे हैं लोगों के खून-पसीने के पैसे। गांव की गलियों से लेकर शहर की संकरी गलियों तक, एक अदृश्य जाल फैल चुका है नाम है ‘साइबर ठगी’। लेकिन इस अंधेरे में भी अगर कोई दीया टिमटिमा रहा है, तो वह है दरभंगा साइबर थाना, जिसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में चतुराई केवल अपराधियों की बपौती नहीं. पढ़े पुरी खबर......

जब फेसबुक ने छीना राजू कुमार का सपना और दरभंगा साइबर थाना बना उम्मीद की आख़िरी डोर: ₹8.5 लाख की साइबर ठगी के बाद न्यायालय के आदेश पर ₹2.83 लाख की राशि हुई वापस, शेष की वापसी प्रक्रिया में
जब फेसबुक ने छीना राजू कुमार का सपना और दरभंगा साइबर थाना बना उम्मीद की आख़िरी डोर: ₹8.5 लाख की साइबर ठगी के बाद न्यायालय के आदेश पर ₹2.83 लाख की राशि हुई वापस, शेष की वापसी प्रक्रिया में

दरभंगा: वक़्त बदल रहा है, और बदलते वक़्त के साथ ठगों की चालें भी बदल रही हैं। अब लाठी और कट्टा नहीं, मोबाइल और माउस से चुराए जा रहे हैं लोगों के खून-पसीने के पैसे। गांव की गलियों से लेकर शहर की संकरी गलियों तक, एक अदृश्य जाल फैल चुका है नाम है ‘साइबर ठगी’। लेकिन इस अंधेरे में भी अगर कोई दीया टिमटिमा रहा है, तो वह है दरभंगा साइबर थाना, जिसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में चतुराई केवल अपराधियों की बपौती नहीं।

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आज जब न्याय के चौखट पर एक और पीड़ित की उम्मीदें जवाब दे रही थीं, दरभंगा पुलिस की एक टुकड़ी ने उसे फिर से हौसले की चादर ओढ़ा दी। यह कहानी है राजू कुमार की। पेशे से एक सामान्य युवक, जिनके सपनों में स्टूडियो का शोरूम था, लेकिन डिजिटल झांसे ने उनके उस सपने को कर्ज़ और खामोशी के कब्रिस्तान में दफना दिया।

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ठगी की पटकथा: फेसबुक पर छल का जाल: साल 2024 के सितम्बर की एक दोपहर। राजू कुमार को फेसबुक पर एक विज्ञापन दिखा "कम पूंजी में शानदार स्टूडियो का सेटअप, फुल सपोर्ट के साथ।" शब्दों में मिठास और वादों में सोना चमकता था। बातों-बातों में राजू कुमार से धीरे-धीरे कर ₹8,50,000/- की मोटी रकम ऐंठ ली गई। शोरूम तो कहीं नहीं बना, लेकिन उनके सपनों का ढांचा जरूर ढह गया। आंखें भर आईं, पुलिस में रिपोर्ट की और फिर एक लंबे इंतज़ार की शुरुआत हुई।

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कांड संख्या 91/24 न्याय की उम्मीद का अंक: इस ठगी की प्राथमिकी 12 अक्टूबर 2024 को साइबर थाना दरभंगा में कांड संख्या 91/24 के रूप में दर्ज हुई। भारतीय दंड संहिता की नई धाराएं 303(2)/318(4)/340(2) BNS और आई.टी. एक्ट की धारा 66(1)/66(D) इस केस में जोड़ी गईं। लेकिन सवाल यह था क्या वाकई पुलिस इस डिजिटल ठगों के मकड़जाल में घुसकर राजू के पैसों को वापस ला पाएगी?

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अनुसंधानकर्ता नवीन कुमार: तकनीक के वीर: इस केस की कमान पु०नि० नवीन कुमार को सौंपी गई। उन्होंने अपने अनुभव और डिजिटल साक्ष्य के माध्यम से ठगी की कड़ियों को जोड़ना शुरू किया। मोबाइल नंबर, वर्चुअल अकाउंट, पेमेंट गेटवे, ईमेल आईडी, डिजिटल फुटप्रिंट इन सभी का सूक्ष्मता से विश्लेषण हुआ। दिन-रात की अथक मेहनत के बाद आज 13 जून 2025 को अदालत के आदेशानुसार ₹2,83,584/- की होल्ड राशि को पीड़ित के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया।

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वापसी सिर्फ पैसे की नहीं, भरोसे की भी थी: साइबर ठगी के मामलों में आमतौर पर एक बार पैसा चला गया तो लौटना नामुमकिन जैसा होता है। ऐसे में यह रिफंड केवल एक राशि नहीं थी यह उस व्यवस्था की कार्यकुशलता का प्रमाण था, उस विश्वास की पुनर्स्थापना थी, जिसे आम लोग पुलिस से खो चुके थे।

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वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का नेतृत्व और साइबर टीम की प्रतिबद्धता: दरभंगा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में साइबर थाने की टीम लगातार तकनीकी अपराधों के विरुद्ध मुस्तैद है। पुलिस उपाधीक्षक-सह-थानाध्यक्ष, साइबर थाना, और अनुसंधानकर्ता नवीन कुमार ने इस केस में जिस तत्परता, तकनीकी दक्षता और मानवीय संवेदना का परिचय दिया, वह अन्य जिलों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है।

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क्या बाकी राशि भी वापस आएगी?

इस सवाल पर थानाध्यक्ष का उत्तर स्पष्ट था “हमारी कोशिश जारी है। शेष राशि की रिकवरी के लिए आवश्यक प्रक्रिया न्यायालय के मार्गदर्शन में पूरी की जा रही है। जल्द ही शेष राशि भी वादी को लौटाई जाएगी।”

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विचार के बीज: आमजन को भी जागरूक होना होगा: यह सफलता जितनी पुलिस की है, उतनी ही समाज के लिए एक सीख भी है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप पर फैलते व्यापारिक झांसों से सावधान रहना होगा। कोई भी लेन-देन करने से पहले उसका सत्यापन आवश्यक है। किसी अनजान व्यक्ति या कंपनी को पैसे भेजने से पहले साइबर हेल्पलाइन (1930) या नजदीकी थाना से संपर्क करना अनिवार्य बनाना चाहिए।

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एक ओर जहां देश डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहा है, वहीं अपराधी भी उसी रास्ते से ठगी के नए तरीके अपना रहे हैं। ऐसे में दरभंगा साइबर थाना की यह उपलब्धि बताती है कि तकनीक से लड़ने के लिए तकनीकी दक्षता, त्वरित कार्रवाई और संवेदनशीलता की त्रयी सबसे बड़ा हथियार है। यह सिर्फ राजू कुमार की लड़ाई नहीं थी यह हर उस आम आदमी की कहानी थी, जो अपने खून-पसीने की कमाई से भविष्य संवारने चला था, पर झांसे का शिकार हो गया। दरभंगा पुलिस ने सिर्फ पैसा नहीं लौटाया उसने जनता के दिल में बैठा एक भरोसा फिर से जिंदा किया है।