दरभंगा की अदालत से सियासत को बड़ा झटका: भाजपा विधायक मिश्री लाल यादव की जेल यात्रा, विधायकी पर तलवार और चुनावी भाग्य की अनिश्चितता के साए में छह साल पुरानी आपराधिक गुत्थी का नया खुलासा

दरभंगा की न्यायपालिका ने एक बार फिर सियासत के गलियारों को झकझोरा है। दरभंगा कोर्ट में भाजपा विधायक और अलीनगर विधानसभा के प्रतिनिधि मिश्री लाल यादव के लिए राहत की कोई किरण नहीं दिखी। उनके खिलाफ एक पुराने, गहरे विवादित आपराधिक मामले में अपील खारिज होते ही तीन माह की जेल की सजा मिली है। यह सजा महज एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य पर एक भयंकर संकट की घंटी है. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा की अदालत से सियासत को बड़ा झटका: भाजपा विधायक मिश्री लाल यादव की जेल यात्रा, विधायकी पर तलवार और चुनावी भाग्य की अनिश्चितता के साए में छह साल पुरानी आपराधिक गुत्थी का नया खुलासा
दरभंगा की अदालत से सियासत को बड़ा झटका: भाजपा विधायक मिश्री लाल यादव की जेल यात्रा, विधायकी पर तलवार और चुनावी भाग्य की अनिश्चितता के साए में छह साल पुरानी आपराधिक गुत्थी का नया खुलासा

दरभंगा की न्यायपालिका ने एक बार फिर सियासत के गलियारों को झकझोरा है। दरभंगा कोर्ट में भाजपा विधायक और अलीनगर विधानसभा के प्रतिनिधि मिश्री लाल यादव के लिए राहत की कोई किरण नहीं दिखी। उनके खिलाफ एक पुराने, गहरे विवादित आपराधिक मामले में अपील खारिज होते ही तीन माह की जेल की सजा मिली है। यह सजा महज एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य पर एक भयंकर संकट की घंटी है।

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यह वही मिश्री लाल यादव हैं, जिनकी छवि दशकों से क्षेत्रीय राजनीति में दबंग और प्रभावशाली नेता की रही। लेकिन न्याय के समक्ष उनकी राजनीतिक रौनक फीकी पड़ती नजर आ रही है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि कानून के कटघरे में कोई भी व्यक्ति चाहे वह विधायक हो या आम नागरिक अपने अपराधों से ऊपर नहीं है।

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पुरानी घटना, नया संकट: छह साल पुराना मुकदमा फिर उठा तलवार की तरह: यह विवाद कोई नया नहीं। यह मामला है छह साल पुरानी आपराधिक घटना का, जो 29 जनवरी 2019 की रात अलीनगर के समीप समैला गांव के पास घटित हुई। उस दिन उमेश मिश्रा नामक एक पीड़ित ने अपने जीवन पर मंडराते खतरे को लेकर प्राथमिकी दर्ज कराई। उसने आरोप लगाया कि मिश्री लाल यादव और उनके साथी सुरेश यादव ने उसे घेरकर फरसे से हमला किया और लूटपाट भी की।

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इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मामले का निपटारा तेजी से न्यायालय के समक्ष लाया गया। कोर्ट के समक्ष यह प्रकरण बिचारण वाद संख्या 884/23 के रूप में दर्ज था, जो रैयाम थाना में मामले संख्या 04/19 से संबद्ध था। इस जांच-पड़ताल के बाद अदालत ने 7 मई 2025 को फैसला सुनाते हुए धारा 323 के तहत तीन माह का कारावास और 500 रुपये का अर्थदंड दोनों अभियुक्तों को सुनाया।

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न्यायालय की तलवार ऊपर लटकी : विधायकी पर संकट और चुनावी भविष्य अंधकारमय: मिश्री लाल यादव की तरफ से की गई अपील को अदालत ने खारिज कर दिया है, जिसका मतलब साफ है कि वे अब जेल जाएंगे। लेकिन मामला यहीं नहीं रुकता। इस प्रकरण में एक और याचिका दायर है, जिसमें धारा 506 के तहत अधिकतम दो वर्ष की सजा का प्रावधान है। इस याचिका पर अदालत 27 मई को अपना अंतिम फैसला सुनाएगी।

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जानकारों की मानें तो अगर कोर्ट इस याचिका को स्वीकार कर अधिकतम सजा सुनाती है, तो मिश्री लाल यादव की विधायकी छिन सकती है। न केवल विधायक पद से हाथ धोना पड़ेगा, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी भागीदारी भी अवैध हो जाएगी। ऐसे में राजनीति के भंवर में फंसे इस दबंग नेता का भविष्य झूल गया है।

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राजनीतिक सत्ता या कानून का शासन: मिथिला की जनता का सवाल: यह मामला न केवल एक विधायक के अपराध की कहानी है, बल्कि मिथिला क्षेत्र में न्यायपालिका के प्रति जनता के विश्वास की परीक्षा भी है। क्या राजनीतिक दबावों के आगे न्यायपालिका अपनी स्वतंत्रता बनाए रख पाएगी? क्या अपराधी चाहे कोई भी हो, उसे कानूनी दंड से बचाया जाएगा? दरभंगा और अलीनगर की जनता इन सवालों के जवाब के लिए बेकरार है। जनता की नजरें अदालत पर टिकी हैं, जो अब साबित करेगी कि कानून की बागडोर कितनी मजबूत है।

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विधायक की प्रतिक्रिया : उम्मीद या बचाव का तर्क? मिश्री लाल यादव ने अदालत के फैसले को स्वीकार करने की बात कही है। उन्होंने कहा, “हम न्यायालय का सम्मान करते हैं। पुराने फैसले को बरकरार रखा गया है। 27 मई को सुनवाई है, उम्मीद है कि न्याय मिलेगा।” पर क्या यह सिर्फ एक राजनीति-संवेदनशील बयान भर है, या उनके भीतर अब भी न्याय के प्रति कोई आस्था बची है? सवाल यह भी है कि जब एक विधायक स्वयं अपराध के आरोपों में घिरा हो, तो वह जनता के हित की बात कितनी ईमानदारी से कर सकता है?

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न्याय की परीक्षा और सियासी संघर्ष की नई दास्तां: मिश्री लाल यादव के मामले ने मिथिला की राजनीति और न्याय व्यवस्था के बीच चल रहे संघर्ष को फिर से उजागर कर दिया है। यह कहानी केवल एक विधायक के फॉल्ट की नहीं, बल्कि लोकतंत्र के सिरे की कड़ी कानून के पालन की भी है। अगर न्यायालय कठोर फैसले से पीछे हटता है, तो यह क्षेत्र की राजनीति में एक घातक संदेश होगा। वहीं अगर कानून अपना फैसला सुनाता है, तो यह साबित करेगा कि राजनीति में अपराध को कोई जगह नहीं। अभी न्यायालय के अगले फैसले का इंतजार है। 27 मई को जब कोर्ट अपनी सुनवाई पूरी करेगा, तब पता चलेगा कि मिथिला की राजनीति में कितनी सच्चाई और कितनी सजा है।