जयंती पर पूरी शिद्दत से याद किए गए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर एवं मैनेजर पांडेय

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर एवं सुविख्यात मार्क्सवादी आलोचक मैनेजर पांडेय की जयंती के अवसर पर विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग में संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार उत्पल ने कहा कि बहुत सुंदर सुयोग है कि अपनी–अपनी विधा में क्रांति भावना लेकर आए दो साहित्यिक पुरोधाओं की आज जयंती है. पढ़ें पूरी खबर......

जयंती पर पूरी शिद्दत से याद किए गए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर एवं मैनेजर पांडेय

दरभंगा: राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर एवं सुविख्यात मार्क्सवादी आलोचक मैनेजर पांडेय की जयंती के अवसर पर विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग में संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार उत्पल ने कहा कि बहुत सुंदर सुयोग है कि अपनी–अपनी विधा में क्रांति भावना लेकर आए दो साहित्यिक पुरोधाओं की आज जयंती है।

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दोनों ही साहित्यिक महापुरुष न केवल जन्म दिन साझा करते हैं बल्कि साहित्य को नई विचार भूमि प्रदान करते हुए एक विलक्षण आभा भी प्रदान करते हैं। दिनकर ओजस्विता के कवि हैं तो सुकुमार भावना के भी कवि हैं, प्रायः उनका यह पक्ष अलक्षित रह जाता है। उन्होंने आगे कहा कि दिनकर अपने राष्ट्रवाद में हाशिए के समाज को भी स्थान देते हैं। उनका राष्ट्र चिंतन बहिष्कार का नहीं बल्कि स्वीकार का है। अन्यकरण के बजाय बहुलता पर जोर है। जो हमारे लोकतंत्र की भी नींव है।

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वहीं, मैनेजर पांडेय ने अपनी आलोचना से ऐसी नींव डाली कि आने वाले समय में साहित्य और समाज को उनसे दिशा मिलती रहेगी। मौके पर पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानू प्रसाद सिंह ने कहा कि दिनकर मिथिला के कवि हैं। दिनकर विद्यापति के 600 वर्षों के पश्चात ऐसे कवि हैं जिनको राष्ट्रीय स्वीकृति मिली। उसका बड़ा कारण था कि उनकी कविताओं में अपने समय की धड़कन और बेचैनी है। दिनकर के लिए भारत राष्ट्र अमूर्त नहीं है। भारत राष्ट्र उनके लिए भारत की जनता है। किसान और मजदूर उनका राष्ट्र हैं। दिनकर कट्टर राष्ट्रवाद की कड़ी आलोचना करते हैं।

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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने कट्टर राष्ट्रवाद के विद्रूप चेहरा को भलीभांति सामने लाया। लेकिन राष्ट्र उनकी संवेदनाओं से कभी पृथक भी नहीं है। 62 में भारत–चीन युद्ध के दौर में उनका राष्ट्रवाद साहित्यिक धरातल पर फिर उभर कर आता है। भारत उनके जेहन में है। यही कारण है कि जब भारतीय साहित्य की परिकल्पना की जाती है तो दिनकर उसकी अग्रिम पंक्ति में नज़र आते हैं।

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दिनकर ने जिस राष्ट्र की कल्पना की वह आज भी प्रसांगिक है: मैनेजर पांडेय को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वो कविता व साहित्य का सामाजिक सरोकार है, इसके बड़े हिमायती थे। मैनेजर पांडेय ने अपने आलोचना कर्म से इतिहास लेखन की वैज्ञानिक दृष्टि पैदा की। कृष्णवादी काव्यधारा को मध्यकालीन सांस्कीतिक नवजागरण के रूप में चिन्हित करना, हिंदी साहित्य पर महात्मा गांधी के प्रभाव को तलाशना यह दर्शाता है कि उनके चिंतन में जड़ता नहीं है, निरंतर विकास है। उन्होंने बेशक मार्क्सवादी आलोचना का सृजनात्मक विकास किया है। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि आज दिनकर और मैनेजर पांडेय को याद करने के साथ ही उस ऐतिहासिक 23 सितंबर को भी याद करने का दिन है जब बाबासाहेब आंबेडकर ने छुआछूत मिटाने का संकल्प लिया था।

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आज का समय लूट–झूठ, फासिस्ट सांप्रदायिक सत्ता से मुठभेड़ करते हुए प्रतिरोधी संस्कृति का समय है: मैनेजर पांडेय ने इतिहास दृष्टि, यथार्थवाद, विचारधारा को हिंदी आलोचना के प्रमुख मानकों के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। इसके साथ ही उनका मानना था कि साहित्य का जनांदोलन से सीधा संबंध होना चाहिए। और सचमुच मैनेजर पांडेय की रचनाएं यथास्थितिवादी व्यवस्था से मुठभेड़ करना चाहती हैं। वहीं दिनकर के सांस्कृतिक चिंतन को रेखांकित करते हुए प्रो. सुमन ने कहा कि दिनकर गंगा–जमुनी संस्कृति की बात करते हैं। यहां जितनी जातियां हैं, जितने संप्रदाय हैं, सभी मिलेजुले हैं। दुनिया में भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है। जो लोग इस विविधता को समाप्त करना चाहते हैं, वो दिनकर के विरुद्ध हैं। दिनकर जनता के संघर्ष में हैं।

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दिनकर हिंदुस्तान की बहुलतावादी संस्कृति में मिलेंगे। वो जनांदोलनों में, लोककंठ में बसते हैं। वास्तव में दिनकर सारा आकाश के कवि हैं। विभागीय शिक्षिका डॉ. मंजरी खरे ने कहा कि दिनकर कविता में सूर्य के पर्याय हैं। कितने ही मौकों पर देश को सचेत किया उन्होंने। उनकी तमाम रचनाओं में एक विलक्षण ऊर्जा है। जब भी पढ़ें ऊर्जा महसूस करेंगे। दिनकर और मैनेजर पांडेय जैसे महान साहित्यिकों के लेखन से हमारा जीवन आज भी आलोकित होता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरीय शोधार्थी कृष्णा अनुराग ने कहा कि पराधीन भारत जैसी चुनौतियां आज भी देश के सामने हैं।

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आज भी साम्राज्यवादी शक्तियां हमारे देश पर गिद्ध दृष्टि गड़ाई हुई हैं। उनसे मुकाबिल होने को निसन्देह दिनकर का महान वैचारिक आयुध हमारी चिंतन परंपरा में है। संगोष्ठी के माध्यम से हिन्दी दिवस पर आयोजित कविता पाठ एवं भाषण प्रतियोगिता के सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागियों को सम्मानित भी किया गया। कार्यकम में शोध छात्र सियाराम मुखिया, दुर्गानंद, शिखा, सरिता, काजल, बेबी, समीर, स्नातकोत्तर छात्र–छात्राएं शिवम मिश्र, दर्शन सुधाकर, दीपक कुमार, नेहा सहित बड़ी संख्या में श्रोताओं की उपस्थिति रही।