कुलसचिव पद पर उलटफेर : मिथिला विश्वविद्यालय में अवकाश की आड़ में अधिकार का अंत, डॉ. पंडित पदमुक्त, डॉ. हंसदा को कमान

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की बंद गलियों और फाइलों की थकी आवाजों के बीच मंगलवार को एक बड़ी प्रशासनिक उलटफेर ने हलचल पैदा कर दी। कुलसचिव डॉ. अजय कुमार पंडित को उनके पद से मुक्त कर दिया गया है। उनके स्थान पर गृह विज्ञान विभाग की अध्यक्ष सह उप-कुलसचिव द्वितीय डॉ. दिव्या रानी हंसदा को कुलसचिव का दायित्व सौंपा गया है वित्तीय प्रभार सहित. पढ़े पुरी खबर......

कुलसचिव पद पर उलटफेर : मिथिला विश्वविद्यालय में अवकाश की आड़ में अधिकार का अंत, डॉ. पंडित पदमुक्त, डॉ. हंसदा को कमान
मिथिला विश्वविद्यालय में अवकाश की आड़ में अधिकार का अंत, डॉ. पंडित पदमुक्त, डॉ. हंसदा को कमान

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की बंद गलियों और फाइलों की थकी आवाजों के बीच मंगलवार को एक बड़ी प्रशासनिक उलटफेर ने हलचल पैदा कर दी। कुलसचिव डॉ. अजय कुमार पंडित को उनके पद से मुक्त कर दिया गया है। उनके स्थान पर गृह विज्ञान विभाग की अध्यक्ष सह उप-कुलसचिव द्वितीय डॉ. दिव्या रानी हंसदा को कुलसचिव का दायित्व सौंपा गया है वित्तीय प्रभार सहित।

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राजभवन की ओर से जारी अधिसूचना में साफ कहा गया है कि यह निर्णय कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी के अनुरोध पर लिया गया। डॉ. पंडित बीते काफी समय से अवकाश पर थे, और विश्वविद्यालय की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था एक तरह से लुंज-पुंज अवस्था में पड़ी थी।

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डॉ. अजय कुमार पंडित ने 10 जून 2023 को कुलसचिव पद का कार्यभार संभाला था। लेकिन यह कार्यकाल विवाद, टकराव और अंतर्विरोध की स्थायी कथा बन गया। पहले तत्कालीन कुलपति प्रो. एस.पी. सिंह से उनकी ठनी। विश्वविद्यालय की दीवारों के भीतर दो शक्तियों की खींचतान शुरू हो चुकी थी। सिंह के बाद जब प्रो. चौधरी कुलपति बने, तो थोड़ी राहत मिली, लेकिन वह राहत अस्थायी थी शांति की चादर के नीचे विवाद की चिंगारी सुलगती रही।

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विवाद ने उस समय विकराल रूप लिया जब डॉ. पंडित चिकित्सा अवकाश के बाद फिर से योगदान देने लौटे। लेकिन अब विश्वविद्यालय में राजनीतिक हस्तक्षेप भी घुस चुका था। शिक्षा की राजनीति में कब कौन किसके साथ खड़ा हो जाए, यह कोई नहीं जानता। लेकिन उस वक्त हालात को किसी तरह काबू में किया गया। पर जो आग भीतर जल रही थी, वह कभी-कभी धुंए की शक्ल में बाहर आती रही।

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17 अप्रैल 2025 को एक बार फिर डॉ. पंडित अर्जित अवकाश पर चले गए। अबकी बार विश्वविद्यालय के भीतर गड़बड़ी खुलकर दिखने लगी। विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी जिम्मेदारी राज्य स्तरीय बीएड संयुक्त प्रवेश परीक्षा (CET-B.Ed), जो 28 मई को आयोजित होनी है अधर में लटक गई। तैयारी ठप पड़ गई। समन्वयक हतप्रभ। फाइलें उलझी। और प्रशासन थका हुआ।

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18 मई को राजभवन में आपात बैठक बुलाई गई। सूत्र बताते हैं कि बैठक में कुलसचिव को भी बुलाया गया था, लेकिन वे अनुपस्थित रहे। यह अनुपस्थिति उनके पद के भविष्य पर अंतिम कील साबित हुई। राजभवन ने एक सख्त निर्णय लिया कुलपति के प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई और डॉ. पंडित को पदमुक्त कर दिया गया।

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अब जिम्मेदारी सौंप दी गई है डॉ. दिव्या रानी हंसदा को। वह विश्वविद्यालय की गृह विज्ञान विभागाध्यक्ष होने के साथ-साथ उप-कुलसचिव द्वितीय का भी दायित्व निभा रही थीं। अब उन्हें कुलसचिव का वित्तीय प्रभार भी दिया गया है और वह तब तक इस पद पर रहेंगी जब तक नई स्थायी नियुक्ति नहीं हो जाती।

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यह महज एक प्रशासनिक फेरबदल नहीं है, बल्कि यह मिथिला विश्वविद्यालय की अंदरूनी राजनीति, पद-प्रतिष्ठा और प्रशासनिक जवाबदेही का आईना है। विश्वविद्यालय के शिक्षक समुदाय से लेकर छात्र संगठनों तक में इस फैसले को लेकर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। एक वर्ग इसे 'अनिवार्य निर्णय' मान रहा है, तो दूसरा इसे 'आतंरिक संघर्ष का परिणाम' कह रहा है।

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डॉ. पंडित और कुलपति प्रो. चौधरी, दोनों ही कभी छपरा जिले के अलग-अलग महाविद्यालयों में प्राचार्य रह चुके हैं। यह समान पृष्ठभूमि भी टकराव को रोक नहीं सकी। इसका सीधा अर्थ है व्यक्ति से अधिक विचार और अधिकार की लड़ाई थी। डॉ. पंडित का लंबा प्रशासनिक अनुभव भी उन्हें नहीं बचा सका, जब वह अनुपस्थिति के घेरे में आ गए।

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डॉ. हंसदा के सामने अब दोहरी चुनौती है विश्वविद्यालय में प्रशासनिक स्थिरता लाना और CET-B.Ed परीक्षा को निर्बाध रूप से संपन्न कराना। मिथिला विश्वविद्यालय का इतिहास रहा है कि जब भी कोई महिला अधिकारी प्रशासनिक कमान में आई है, उसने संगठन को एक नया अनुशासन दिया है। डॉ. हंसदा से भी यही अपेक्षा है।

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यह मामला मिथिला विश्वविद्यालय के भविष्य के लिए भी एक संकेत है कि अब समय आ गया है जब पद से अधिक जवाबदेही को मापदंड बनाया जाए। अवकाश, टकराव और अनुपस्थिति के युग से निकलकर अब 'उपस्थिति और उत्तरदायित्व' की संस्कृति को जगह मिलनी चाहिए।