दरभंगा का रामबाग: जहाँ शिक्षा की चिता पर नशे की हँसी गूंजती है, युवाओं की नसों में बहती ज़हर की लत और प्रशासन की लंबी चुप्पी को तोड़ते थानाध्यक्ष सुधीर कुमार की गूंजती हुई रात ये लड़ाई अब सिर्फ़ पुलिस की नहीं, पूरे समाज की है!
दरभंगा, जो कभी मिथिला की सांस्कृतिक और शैक्षणिक राजधानी कहलाता था, आज उसी की छाती पर एक ऐसी कराहती हुई चीख सुनाई दे रही है, जिसे या तो हम अनसुना कर चुके हैं या जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। यह चीख रामबाग के उस वीरान पड़े परिसर से निकल रही है, जहां कभी विद्या विहार विद्यालय का नाम सुनते ही होनहार छात्रों की तस्वीर उभरती थी, लेकिन आज वही स्थान नशे का अड्डा बनकर दरभंगा के भविष्य को लीलने की ओर बढ़ रहा है. पढ़े पुरी खबर.....

दरभंगा, जो कभी मिथिला की सांस्कृतिक और शैक्षणिक राजधानी कहलाता था, आज उसी की छाती पर एक ऐसी कराहती हुई चीख सुनाई दे रही है, जिसे या तो हम अनसुना कर चुके हैं या जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। यह चीख रामबाग के उस वीरान पड़े परिसर से निकल रही है, जहां कभी विद्या विहार विद्यालय का नाम सुनते ही होनहार छात्रों की तस्वीर उभरती थी, लेकिन आज वही स्थान नशे का अड्डा बनकर दरभंगा के भविष्य को लीलने की ओर बढ़ रहा है।
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स्कूल नहीं, नशे का आश्रय: यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि कटु सत्य है कि रामबाग स्थित 'पुराना विद्या विहार विद्यालय' अब किसी शिक्षा का केन्द्र नहीं, बल्कि दरभंगा शहर के बिगड़ते युवाओं का नशे का अड्डा बन गया है। वर्षों पूर्व यह विद्यालय बंद हो चुका है और अब इसके जर्जर भवन के बाहर फैले मैदान में, जहाँ चारों ओर ऊँची झाड़ियाँ और जंगल उग आए हैं युवाओं का जमावड़ा लगता है। जैसे ही दोपहर ढलती है, इस वीरान मैदान में गतिविधियाँ तेज़ हो जाती हैं। अब यह स्थान शिक्षा नहीं, 'नशे की नालियों' का प्रतीक बन चुका है। वहाँ बिखरी पड़ी हज़ारों की संख्या में कोरेक्स की खाली बोतलें, फेविकोल सूँघने के लिए कटे हुए रबर के टुकड़े, ब्राउन शुगर और गांजे की अवशेष, और उपक्त सिरिंजें, इस समाज के आत्मघात की चुप गवाही बनकर पड़ी हैं।
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युवा जो कल देश बनाते, आज खुद को खो रहे हैं: वहाँ आने वाले चेहरे कोई अपराधी नहीं लगते बल्कि वे वही बच्चे हैं, जिन्हें कभी स्कूल में प्रार्थना करते देखा गया था, जो माता-पिता की उम्मीद थे। लेकिन बेरोजगारी, सामाजिक उदासीनता, प्रशासनिक अनदेखी और एक खतरनाक नशे के गिरोह के नेटवर्क ने इन चेहरों को ऐसा विकृत बना दिया है कि अब उनमें आत्मविश्वास नहीं, लाचारी और लत झलकती है। कुछ लड़कों के हाथों में किताबें नहीं, कोरेक्स की बोतलें हैं। कुछ ने अपनी जीभ पर टेबलेट रखी है, जिसे वे 'फ्लाई करने की गोली' कहते हैं। और कुछ ने मोबाइल पर नशे से जुड़ा वीडियो देखकर उसे ही "लाइफस्टाइल" बना लिया है।
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जंगल बना 'जंगलराज' का अड्डा: विद्यालय के बाहर फैला मैदान और उसके पीछे फैले जंगल, जो कभी प्राकृतिक सौंदर्य का हिस्सा थे, अब पूर्णतः असुरक्षित हो चुके हैं। वहाँ बैठने के लिए लकड़ी की बेंच नहीं, बल्कि पड़ी हुई टूटी कुर्सियाँ हैं। नशेड़ी युवकों ने अपने 'जगह' तय कर लिए हैं। कई स्थानीय निवासियों के अनुसार, वहाँ प्रतिदिन दोपहर 2 बजे के बाद 10-12 युवक अलग-अलग गुटों में आते हैं। कोई झोले में कुछ लाता है, कोई जेब में। अधिकांश युवक 16 से 25 वर्ष की उम्र के बीच हैं। इनमें कई विद्यालय ड्रॉपआउट, कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्र, और कुछ बेरोजगार युवक हैं, जिनके हावभाव से स्पष्ट है कि वे किसी गैंग के सदस्य नहीं, बल्कि इस लत के शिकार हैं।
नशे की खामोशी में गूंजती अपील: स्थानीय लोग डरे हुए हैं। कोई बोलने को तैयार नहीं। एक बुजुर्ग व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया: “हम लोग घर से निकलने में डरते हैं। हमारे पोते को स्कूल भेजने में भी डर लगता है। वहाँ क्या हो रहा है, सब जानते हैं, लेकिन कोई कुछ कहे तो उन्हीं पर आरोप लग जाता है।” कुछ महिलाओं ने भी शिकायत की है कि शाम होते ही वे उस रास्ते से गुजरने से डरती हैं। वहाँ अक्सर लड़के 'हल्ला करते हुए नशे में चूर' मिलते हैं। कई बार छींटाकशी की घटनाएँ भी हुई हैं। लेकिन FIR तक बात नहीं जाती कारण, डर और भरोसे की कमी।
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प्रशासनिक चुप्पी या अनभिज्ञता?
सबसे बड़ा प्रश्न यही है क्या पुलिस को इस जगह की जानकारी नहीं है?
क्या नगर निगम, शिक्षा विभाग, या जिला प्रशासन को यह नहीं पता कि एक परित्यक्त विद्यालय परिसर में ऐसा खुला नशे का व्यापार चल रहा है?
क्या वहाँ बिखरे हुए हजारों सिरिंज, बोतलें और लतग्रस्त चेहरे किसी जांच की ज़द में नहीं आते?
कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि यह नशे की समस्या केवल एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि किसी सुनियोजित नेटवर्क का हिस्सा है जो इन युवाओं को एक रणनीति के तहत तबाह कर रहा है।
जरूरी है ठोस और त्वरित कार्रवाई: समस्या को अगर रोका नहीं गया, तो जल्द ही यह स्थान 'दरभंगा का छोटा चरस टोला' बन जाएगा। और तब केवल स्थानीय नहीं, राज्य स्तर पर भी यह बदनामी का कारण बनेगा।
स्थिति को रोकने के लिए कुछ जरूरी कदम:
1.विद्यालय परिसर की घेराबंदी और नियमित पुलिस गश्ती।
2. CCTV कैमरों की निगरानी और छुपे कैमरों से सबूत एकत्र।
3. स्थानीय युवाओं की काउंसलिंग और पुनर्वास।
4. विद्यालय को पुनः शैक्षणिक या सामाजिक उपयोग में लाना।
5. नशा आपूर्ति करने वाले नेटवर्क की पहचान और गिरफ्तारी।
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जब पुलिस सक्रिय हुई, जागी उम्मीद: आज शाम होते ही विश्वविद्यालय थाना के थानाध्यक्ष सुधीर कुमार अपने लव लश्कर के साथ स्थल पर पहुँचे। उन्होंने विद्यालय के आसपास के मैदान और जंगल क्षेत्र का निरीक्षण किया। हालाँकि उस समय कोई भी नशेड़ी उनके हाथ नहीं लग सका, लेकिन उनकी सक्रियता से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि अब प्रशासन ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। उनकी उपस्थिति से न केवल स्थानीय नागरिकों को राहत मिली, बल्कि एक कड़ा संदेश भी गया कि अब रामबाग की वीरानियाँ अनदेखी नहीं रहेंगी।
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यह सिर्फ नशे की बात नहीं, पीढ़ी की बात है: रामबाग के पुराने विद्या विहार विद्यालय की कहानी केवल एक उपेक्षित भवन की नहीं है। यह कहानी है दरभंगा की उस अनदेखी सामाजिक पीड़ा की, जहाँ नशा अब एक अपराध नहीं, एक चलन बन चुका है। यदि आज हमने इस सन्नाटे को आवाज़ नहीं दी, तो कल यह सन्नाटा हमारे ही घरों की दीवारें चीर देगा। यह समय है कि हम सब नागरिक, पत्रकार, प्रशासन और समाज मिलकर इस जगह को फिर से विद्या का विहार बनाएं, ना कि नशे का ‘विनाश विहार’।