"जब सिसकियाँ बनीं आवाज़, और कलम ने इतिहास को फिर से जगा दिया: दरभंगा का राजकिला अब खामोश नहीं, अब रामबाग मैदान में गूंजेगी बच्चों की हँसी, गीत गाएंगे पत्थर, और मुस्कराएगी वो विरासत जिसे वक़्त ने बिसरा दिया था"
कभी-कभी कलम तलवार से भी ज़्यादा असर करती है। और जब उस कलम में भावना, दर्द और ज़मीन की पुकार शामिल हो, तो वह इतिहास को झकझोर सकती है। 21 मार्च 2025 को जब मिथिला जन जन की आवाज समाचार दरभंगा ने राजकिला की सिसकियों को शब्दों में ढाला था, तब शायद किसी को अंदाज़ा नहीं था कि ये शब्द दरभंगा के भाग्य को फिर से लिख देंगे. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा। एक विशेष रिपोर्ट: मिथिला जन जन की आवाज: कभी-कभी कलम तलवार से भी ज़्यादा असर करती है। और जब उस कलम में भावना, दर्द और ज़मीन की पुकार शामिल हो, तो वह इतिहास को झकझोर सकती है। 21 मार्च 2025 को जब मिथिला जन जन की आवाज समाचार दरभंगा ने राजकिला की सिसकियों को शब्दों में ढाला था, तब शायद किसी को अंदाज़ा नहीं था कि ये शब्द दरभंगा के भाग्य को फिर से लिख देंगे।
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उस दिन की रिपोर्ट एक जगा देने वाली चीख थी। मिट्टी में दबे इतिहास को उंगली पकड़ कर बाहर लाने की कोशिश थी। और अब आज उसी खबर का असर सामने है। राजवंश जागा है, किला मुस्कराया है, और रामबाग मैदान फिर से जीवन की तैयारी में है।
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जिसे दुनिया खंडहर समझ बैठी थी, वहाँ अब सपने पलेंगे: राजकिला, जो कल तक उदास था, जिसकी दीवारें रुदाली गा रही थीं, अब नई आशाओं से भर गया है। कुमार कपिलेश्वर सिंह—महाराज कामेश्वर सिंह के वंशज—अब इस किले की पुकार पर जाग उठे हैं। नाला निर्माण कार्य अंतिम चरण में है, जिससे मैदान के चारों ओर फैली बदबू और गंदगी अब अतीत बन जाएगी।
तस्वीर में रामबाग मैदान की जो झलक है, वह एक नई उम्मीद, एक नया अध्याय शुरू होने की प्रतीक लगती है।
कभी जिस रामबाग मैदान पर बच्चों की हँसी तैरती थी, जहाँ सुबह-सुबह बुजुर्ग टहलते थे और शाम को युवक कविताएं गुनगुनाते थे वहाँ अब फिर से वही दृश्य लौटने को तैयार है। वो पत्थर जो रोते थे, अब गीत गाने को तैयार हैं: सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कुमार साहब ने स्वयं इस काम को अपने संरक्षण में लिया है। रामबाग मैदान में अब मिट्टी भरने का कार्य शुरू होने को है। चारों ओर बाउंड्री वॉल की योजना भी तैयार है, ताकि यह मैदान अब फिर कभी बेइज़्ज़ती का पात्र न बने। यह सिर्फ ईंट और सीमेन्ट की दीवार नहीं होगी, यह दरभंगा की अस्मिता की परिधि होगी।
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राजपरिवार के एक सदस्य ने बताया—"अब मैदान केवल मैदान नहीं रहेगा, यह स्मृति का तीर्थ होगा, जहाँ हर बच्चा, हर परिवार और हर प्रेमी-प्रेमिका फिर से इतिहास की गोद में जीवन के पल बिताएंगे।"
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जब बच्चे मुस्कराते हैं, तो इतिहास भी अपना चेहरा धोता है: आप देखिएगा बहुत जल्द बच्चों की हँसी इस मैदान की नई पहचान बनेगी। गेंदों की उछाल, पतंगों की उड़ान, और कानों में गूंजती हँसी—ये सब मिलकर उस विरासत की ताजगी लौटाएँगे जो वक़्त की धूल में गुम हो गई थी। वो बच्चे जो अब भी पूछते हैं—"चाचा, कब मैदान तैयार होगा?"—उनके सवालों में उम्मीद है, उस उम्मीद में मिथिला जन जन की आवाज समाचार खबर की गूंज है। वो सुबह अब दूर नहीं जब रामबाग फिर से दरभंगा की नब्ज़ में धड़कने लगेगा।
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यह सिर्फ राजकिले की कहानी नहीं, यह पत्रकारिता की भी जीत है: जब एक पत्रकार की आवाज इतनी बुलंद हो जाए कि वह नींद में डूबे महलों को जगा दे, जब एक खबर इतनी ताक़तवर हो जाए कि वह पत्थरों में भी जान भर दे—तो समझिए, यह पत्रकारिता का सबसे उजला चेहरा है। मिथिला जन जन की आवाज समाचार ने जो लिखा, वो सिर्फ समाचार नहीं था। वो एक करुण पुकार थी, जिसे इतिहास ने सुना। यह प्रधान संपादक की लेखनी की ताक़त है कि अब दरभंगा का राजकिला शर्म से नहीं, गरिमा से सिर ऊँचा कर रहा है।
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समापन नहीं, शुरुआत है ये: यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई। अब इसकी अगली कड़ी लिखी जानी है। अब जब मैदान फिर से हँसेगा, जब बच्चे फिर दौड़ेंगे, जब परिवार फिर उस मैदान की छाँव में बैठकर मिथिला की खुशबू महसूस करेंगे—तो हर कोई कहेगा: "ये बदलाव एक पत्रकार की सच्चाई और एक वंशज की जागरूकता का नतीजा है।" और तब, जब कोई बच्चा अपने दादा से पूछेगा—"दादा, ये मैदान इतना सुंदर क्यों है?" तो वो कहेंगे—"बेटा, कभी यहाँ एक सिसकी गूंजती थी, जिसे एक पत्रकार ने सुन लिया था..." “खबरें अगर सिर्फ सूचनाएँ होतीं, तो बदलाव नहीं आते; लेकिन जब खबरें धड़कन बन जाएँ, तो इतिहास करवट लेता है।”