"बिहार के मिथिला में जन्मा एक तेजस्वी सूर्य: भवानीपुर सिंहवाड़ा के लाल 'विधांशु शेखर झा' ने UPSC 2024 में 59वीं रैंक के साथ रचा इतिहास, IFS से IAS बनने की गौरवगाथा बनी प्रेरणा की अमर कथा"
कभी मिथिला की धरती से विद्वानों ने दुनिया को ज्ञान का प्रकाश दिया था, आज उसी धरती ने एक और रत्न को जन्म दिया है। सिंहवाड़ा प्रखंड के भवानीपुर गांव से निकलकर विधांशु शेखर झा ने UPSC 2024 में 59वीं रैंक प्राप्त कर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) का ताज अपने मस्तक पर सजा लिया है। यह केवल एक परीक्षा की सफलता नहीं है, यह उस 'मिथिला माटी' की जयघोष है, जो सदियों से प्रतिभाओं को गढ़ती रही है. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा/सिंहवाड़ा: कभी मिथिला की धरती से विद्वानों ने दुनिया को ज्ञान का प्रकाश दिया था, आज उसी धरती ने एक और रत्न को जन्म दिया है। सिंहवाड़ा प्रखंड के भवानीपुर गांव से निकलकर विधांशु शेखर झा ने UPSC 2024 में 59वीं रैंक प्राप्त कर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) का ताज अपने मस्तक पर सजा लिया है। यह केवल एक परीक्षा की सफलता नहीं है, यह उस 'मिथिला माटी' की जयघोष है, जो सदियों से प्रतिभाओं को गढ़ती रही है।
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जहाँ आज बिहार को अक्सर पिछड़ेपन और पलायन की कहानियों से जोड़ा जाता है, वहीं IAS विधांशु झा जैसे युवाओं ने यह साबित कर दिया है कि अगर संकल्प अडिग हो, तो गांव की गलियों से निकलकर भी 'साउथ ब्लॉक' की दहलीज़ पार की जा सकती है।
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IFS बनने के बाद भी नहीं रुके, IAS की ऊंचाईयों तक पहुँचे: वर्ष 2022 में ही विधांशु ने UPSC परीक्षा पास कर IFS अधिकारी बने थे। वह वर्तमान में देहरादून स्थित इंडियन फॉरेस्ट सर्विस ट्रेनिंग अकादमी में प्रशिक्षणरत हैं। परंतु वे उन लोगों में से नहीं जो संतुष्टि को मंज़िल मान लें। उन्होंने खुद से, अपने सपनों से और इस देश से एक वादा किया था — IAS बनकर जनता की सेवा का अधिकार पाने का।
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यही कारण है कि उन्होंने दोबारा UPSC की तैयारी की, दिन को रात में बदला, अपने हर सपने को किताबों के पन्नों में उतारा और अंततः 59वीं रैंक प्राप्त कर देश की सबसे कठिन परीक्षा को दोबारा जीत लिया।
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"यह कोई सामान्य सफलता नहीं, यह उस लड़के की कहानी है जिसने एक बार मंज़िल पाने के बाद भी, उसे और ऊँचा कर दिखाया।"
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घर-परिवार और संस्कार की शक्ति ने गढ़ा ये मुकाम: विधांशु, भवानीपुर निवासी स्वर्गीय मदन मोहन झा के पौत्र हैं। पिता सुशील कुमार झा एक व्यवसायी हैं, जिनकी सोच आधुनिक और संघर्षशील है, वहीं माता विधा झा एक शिक्षिका हैं जिनकी ममता में संस्कार और अनुशासन दोनों की खुशबू है। एकमात्र संतान होने के बावजूद विधांशु ने कभी विशेष सुविधाओं का सहारा नहीं लिया। उन्होंने सफलता की इमारत अपनी मेहनत की ईंटों से खुद खड़ी की।
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भवानीपुर में महापर्व सा माहौल, गांव हुआ गौरवगान में लीन: जैसे ही UPSC 2024 के परिणाम आए, भवानीपुर गांव की गलियों में ढोल-नगाड़े बजने लगे, मिठाइयां बांटी गईं, और हर दरवाज़े से सिर्फ़ एक नाम पुकारा गया — 'IAS विधांशु झा!' बुजुर्गों की आँखें नम थीं, पर गर्व से चमक रहीं थीं। युवा कह रहे थे "अब हमारा भी नंबर आएगा। जब भवानीपुर से IAS बन सकता है, तो हम भी बन सकते हैं।"
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यह महज़ एक खबर नहीं, यह ग्रामीण भारत में सपनों के फिर से जागने की शुरुआत है।
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बिहार की छवि को नया आयाम देने वाला योद्धा: बिहार को अक्सर राजनीतिक अस्थिरता और अपराध की कहानियों में उलझा बताया जाता है, लेकिन विधांशु जैसे युवा उस छवि को बदलने का कार्य कर रहे हैं। वे इस मिथक को तोड़ रहे हैं कि केवल महानगरों के बच्चे ही IAS बन सकते हैं। उन्होंने दिखा दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो मिट्टी से भी सोना उग सकता है।
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विद्यार्थियों के लिए संदेश: परिश्रम से ही बनती है पहचान: IAS विधांशु शेखर झा की सफलता आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत पाठ है। आज की पीढ़ी को यह समझना होगा कि "कोचिंग की क्लास से ज्यादा जरूरी है आत्मअनुशासन की राह। टॉपर्स की कहानियों से ज्यादा प्रेरक है अपनी संघर्ष की किताब।"
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कलम की स्याही से नहीं, संघर्ष की तपिश से लिखा गया है यह नाम — 'IAS विधांशु झा': ये कहानी सिर्फ़ भवानीपुर की नहीं है। ये कहानी हर उस गांव, हर उस घर, हर उस सपने की है, जो रात के अंधेरे में किताबों की रोशनी में पलता है। यह कहानी एक ऐसे बेटे की है जिसने माँ-बाप के सपनों को साकार किया, और मिथिला की धरती पर एक बार फिर से यह ऐलान कर दिया "बिहार अभी जिंदा है, और इसके बेटों में अब भी आग है!"
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"जिसने जंगल को समझा, वह IFS बना, जिसने जनता को समझा, वह IAS बना। और जिसने दोनों को साधा, वो विधांशु शेखर झा बना — मिथिला का मान, भारत का अभिमान!"