दरभंगा-मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक सरकारी वाहन के साथ हुआ दर्दनाक हादसा मुन्ना कुमार की मौके पर मौत, दो कर्मी ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं पढ़िए वह विशेष रिपोर्ट जो कर्तव्य, करुणा और क्रूरता के त्रिकोण में लिखी गई है।

मंगलवार की सुबह थी। सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था, पर राष्ट्रीय राजमार्ग NH-27 पर जीवन की दौड़ शुरू हो चुकी थी। दरभंगा-मुजफ्फरपुर मार्ग पर, मब्बी थाना क्षेत्र के पास स्थित रिलायंस पेट्रोल पंप के ठीक सामने सरकारी जांच की एक छोटी-सी टीम अपने कर्तव्य में लगी थी। एक बोलेरो वाहन, जिसमें प्रवर्तन अवर निरीक्षक मुन्ना कुमार और उनके दो सहयोगी सवार थे, सड़क किनारे खड़ी थी। ये कोई आराम की यात्रा नहीं थी, यह ड्यूटी थी वह ड्यूटी जिसे निभाते हुए कोई नहीं सोचता कि आज की तारीख उसके जीवन की अंतिम तारीख बन जाएगी. पढ़े पुरी रिपोर्ट......

दरभंगा-मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक सरकारी वाहन के साथ हुआ दर्दनाक हादसा मुन्ना कुमार की मौके पर मौत, दो कर्मी ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं पढ़िए वह विशेष रिपोर्ट जो कर्तव्य, करुणा और क्रूरता के त्रिकोण में लिखी गई है।
यह सिर्फ़ एक खाई नहीं... यह वर्दीधारी कर्तव्य की कब्रगाह है। धातु के मलबे में एक ज़िम्मेदारी दबी है, और इन पुलिसकर्मियों की निगाहों में दर्द नहीं सवाल है... कि क्या सरकारी सेवा का अंत यूं ही होगा, घासों के बीच गुमनाम?

दरभंगा: मंगलवार की सुबह थी। सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था, पर राष्ट्रीय राजमार्ग NH-27 पर जीवन की दौड़ शुरू हो चुकी थी। दरभंगा-मुजफ्फरपुर मार्ग पर, मब्बी थाना क्षेत्र के पास स्थित रिलायंस पेट्रोल पंप के ठीक सामने सरकारी जांच की एक छोटी-सी टीम अपने कर्तव्य में लगी थी। एक बोलेरो वाहन, जिसमें प्रवर्तन अवर निरीक्षक मुन्ना कुमार और उनके दो सहयोगी सवार थे, सड़क किनारे खड़ी थी। ये कोई आराम की यात्रा नहीं थी, यह ड्यूटी थी वह ड्यूटी जिसे निभाते हुए कोई नहीं सोचता कि आज की तारीख उसके जीवन की अंतिम तारीख बन जाएगी।

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वह एक पल जो ज़िन्दगी और मौत के बीच खड़ा था: एक तेज़ रफ्तार ट्रक आया। न उसकी आँखों में नींद थी, न उसके पहियों में शर्म। किसी ने उसे रोका नहीं, और उसने रुकना सीखा भी नहीं था। वह आया, और सरकारी बोलेरो को कुछ ऐसे कुचला जैसे बारिश में कोई गिला कागज़। टक्कर इतनी भयानक थी कि गाड़ी सीधा खाई में जा गिरी करीब 30 फीट गहरी खाई, घासों से ढकी, पर भीतर से मौत का अड्डा। गाड़ी पलट गई। चारों ओर सन्नाटा छा गया। न कोई हॉर्न, न चीख बस एक मौत की खामोशी।

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प्रवर्तन निरीक्षक मुन्ना कुमार: एक वर्दी, जो अब मौन है: मुन्ना कुमार उम्र अधिक नहीं, लेकिन अनुभव भारी। समस्तीपुर के हसनपुर थाना क्षेत्र के खोरी गांव से निकला यह जवान, सरकारी सेवा के उस पद पर था, जहाँ हर दिन सड़क पर उतरना पड़ता है। अपनी जान को हथेली पर रखकर, दूसरे की सुरक्षा के लिए। पर सड़क ने आज उसे वापस नहीं लौटने दिया। वह बोलेरो के अंदर ही दम तोड़ चुका था। कोई चीख, कोई सिसकी, कोई आख़िरी अल्फ़ाज़ नहीं मिले। उसकी वर्दी अब धूल में लिपटी हुई थी, और नाम की पट्टी पर अब सिर्फ़ पुलिसवालों की उंगलियों के निशान थे।

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खून से भीगी सरकारी सेवा, और प्रशासन की चुप्पी: गाड़ी में मौजूद अजय कुमार और रवि कुमार दोनों गंभीर रूप से घायल हैं। उन्हें दरभंगा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (DMCH) में भर्ती कराया गया है। डाक्टरों के मुताबिक उनकी हालत अब भी नाज़ुक बनी हुई है। शरीर में टूटी हड्डियाँ, आँखों में मौत का डर और आत्मा में वह झटका जो शायद जीवनभर पीछा नहीं छोड़ेगा। सरकारी सेवा में लगे लोग अब भी सड़क पर तैनात हैं मगर सवाल यह है कि क्या सरकारी कर्मियों की जान इतनी सस्ती है?

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उस खाई का बयान… और चुप है ट्रक: जिस खाई में सरकारी गाड़ी गिरी, वह खाई आज भी वहीं है शांत, स्थिर और निर्दोष। मगर उसका सीना अब एक शहीद वर्दीधारी के निशान से दागदार है। टक्कर मारने वाला ट्रक फरार है। कोई नंबर प्लेट नहीं, कोई कैमरे में कैद नहीं। पुलिस सीसीटीवी फुटेज खंगाल रही है, मगर सड़क के क्रूर सच को कोई वीडियो पकड़ नहीं सकता। मोटरयान निरीक्षक सतीश कुमार कहते हैं कि दोषी वाहन को पकड़ने की कोशिश जारी है। लेकिन मुन्ना कुमार की पत्नी, उनके बच्चे, उनके बूढ़े माता-पिता क्या प्रशासन की “कोशिश” के सहारे अपने ज़ख्म भर सकेंगे?

समाज, प्रशासन और संवेदनशीलता तीनों मौन: इस पूरे हादसे ने एक बार फिर हमें हमारी सड़क सुरक्षा व्यवस्था के सामने आइना थमा दिया है। यह केवल एक ट्रैफिक एक्सीडेंट नहीं था, यह उस तंत्र की विफलता थी जो ड्यूटी पर लगे कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सका। हर पुलिसवाले की आंखें भीग गईं, जब उन्होंने बोलेरो के भीतर मुन्ना कुमार की लाश को देखा। कोई इंस्पेक्टर नहीं था वहां बस एक बेटा था, एक पिता था, एक साथी था, जिसे अब तिरंगे में लपेटकर भेजा जाएगा।

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एक सवाल जो चीख रहा है: कब तक सरकारी ड्यूटी मौत का सामान बनेगी? कब तक तेज रफ्तार वाहन बेकसूर जिंदगियों को लीलते रहेंगे? कब तक सीसीटीवी के भरोसे अपराधी बच निकलेंगे?

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अंत नहीं, एक आरंभ जवाबदेही का: मुन्ना कुमार अब नहीं हैं। मगर उनकी ड्यूटी, उनका समर्पण, उनकी वर्दी आज भी सवाल कर रही है। ज़रूरत है कि यह मौत केवल आंकड़ा न बन जाए। ज़रूरत है कि यह रिपोर्ट किसी फ़ाइल में दबी न रह जाए। यह शोक का नहीं, सिस्टम के जागने का समय है। जिसने सड़क को सेवा की ज़मीन समझा, उसी सड़क ने उसकी चिता सजा दी। वह वर्दी नहीं, एक सपना था जो सड़क के किनारे टूट गया।

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(यह विशेष रिपोर्ट “मिथिला जन जन की आवाज” के लिए तैयार की गई है। आपके पास भी कोई जानकारी, सवाल या प्रतिक्रिया हो, तो हमसे ज़रूर साझा करें। यह केवल एक खबर नहीं, एक आवाज़ है उस इंसाफ़ की जो अब तक अधूरी है।)