"हे भगवान! शिव के पवित्र द्वार पर बहा खून, पुजारी शंभू सिंह की निर्दयता से की गई हत्या—क्या अब हमारे मंदिरों की आस्था, हमारे धर्म और हमारे समाज की सभ्यता भी असुरक्षित हो गई है?"
वो जगह जहां रुद्राभिषेक होता था, अब रुधिर अभिषेक का साक्षी बन गई। जहां हर दिन ‘ॐ नमः शिवाय’ की ध्वनि गूंजती थी, वहां अब मौत की चुप्पी पसरी है। बेगूसराय ज़िले के लाखो थाना अंतर्गत पंसल्ला गांव के शिव मंदिर में हुई पुजारी शंभू सिंह की निर्मम हत्या कोई साधारण अपराध नहीं—यह सनातन आस्था पर सीधा प्रहार है। मंदिर अब शुद्ध नहीं रहा। उसकी चौखट पर बहा खून अब केवल अपराध का नहीं, पूरे समाज की नैतिक हत्या का दस्तावेज़ है. पढ़े पुरी खबर.......

बेगूसराय: वो जगह जहां रुद्राभिषेक होता था, अब रुधिर अभिषेक का साक्षी बन गई। जहां हर दिन ‘ॐ नमः शिवाय’ की ध्वनि गूंजती थी, वहां अब मौत की चुप्पी पसरी है। बेगूसराय ज़िले के लाखो थाना अंतर्गत पंसल्ला गांव के शिव मंदिर में हुई पुजारी शंभू सिंह की निर्मम हत्या कोई साधारण अपराध नहीं—यह सनातन आस्था पर सीधा प्रहार है। मंदिर अब शुद्ध नहीं रहा। उसकी चौखट पर बहा खून अब केवल अपराध का नहीं, पूरे समाज की नैतिक हत्या का दस्तावेज़ है।
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घटना का सिलसिला: अर्धरात्रि की खामोशी, एक गोली, और जीवन का अंतिम मंत्र। रात का डेढ़ बजा समय। पंसल्ला गांव के लोग नींद में थे, लेकिन एक प्राचीन मंदिर के एक कोने में, जहां वर्षों से शंभू सिंह रात्रि विश्राम करते थे, उस रात कुछ और ही लिखा जा रहा था। कोई आया। शायद चुपचाप, शायद क़दमों की आहट को दबाकर। और फिर एक गोली।
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गोलियों की आवाज़ नहीं थी, केवल एक तड़पती आत्मा की मौन चीख थी, जो मंदिर के गर्भगृह से निकलकर आकाश में विलीन हो गई। कोई प्रतिरोध नहीं, कोई संघर्ष नहीं। केवल एक निश्छल जीवन… सोते हुए बली चढ़ा दिया गया।
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शंभू सिंह कौन थे: पंचपन वर्ष की उम्र। चेहरे पर गहराई, व्यवहार में सादगी। न किसी से वैमनस्य, न किसी से कोई कड़वाहट। शंभू सिंह कोई राजनेता नहीं थे, न ही कोई प्रभावशाली नाम। वो सिर्फ़ एक पुजारी थे गांव के मंदिर के, गांव के विश्वास के, और उस आस्था के, जो अब लहूलुहान है। हर सुबह 4 बजे मंदिर का दरवाज़ा खोलते। भक्तों के लिए जल भरते, दीप जलाते, घंटा बजाते। गांव का बच्चा-बच्चा उन्हें ‘बाबा’ कहता। उनकी हत्या केवल एक इंसान की नहीं, एक पीढ़ी के संस्कारों की हत्या है।
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अपराध का स्थल: मंदिर, शिवलिंग, और रुधिर: घटना स्थल का दृश्य इतना विसंगत था कि शब्द भी कांप उठें। मंदिर के फर्श पर बिखरा खून, शिवलिंग के पास पड़ा मृत शरीर, और वहां की दीवारों पर फैला सन्नाटा। मंदिर का वह कोना, जहां वो हर रात सोते थे अब उनकी चिता बन चुका था।
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परिवार का करुण विलाप: उनके भतीजे प्रभात कुमार सिंह की आंखें सूखी थीं, पर दिल बहता रहा। वे बोले: “चाचा की किसी से दुश्मनी नहीं थी। उन्हें जान से मारने की कोई वजह ही नहीं थी। गांव में सबका सम्मान था। मंदिर में ही रहते थे, वहीं सोते थे। हमें सुबह सूचना मिली। जब पहुंचे, तो चाचा वहीं पड़े थे… खून से लथपथ।” गांव की बुज़ुर्ग महिलाएं सिर पीट रहीं थीं: “बाबा को मार दिया! अरे किसका खून सूखा था कि उन्हें मारना पड़ा?”
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पुलिस की कार्रवाई: हर कोण से जांच, पर परिणाम ‘अज्ञात’ लाखो थाना प्रभारी राजीव रंजन ने पुष्टि की कि यह एक हत्या है। FSL की टीम ने सैंपल लिए। एक गोली लगने की बात सामने आई है। लेकिन “क्यों मारा गया, किसने मारा अभी कुछ स्पष्ट नहीं है।” पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पुलिस इस मामले को मंदिर की पवित्रता के अनुरूप गंभीरता से ले रही है?
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हत्या के पीछे क्या:
1. क्या यह धार्मिक असहिष्णुता का मामला था? हाल के वर्षों में मंदिरों पर बढ़ते हमलों को देखते हुए यह सवाल भी उठता है कि कहीं यह हत्या कोई धार्मिक संकेत तो नहीं?
2. क्या यह भूमि विवाद था? गांवों में मंदिर की जमीन पर कब्जा एक आम लड़ाई है। क्या पुजारी किसी रास्ते में आ रहे थे?
3. क्या यह व्यक्तिगत रंजिश थी? परिजनों के अनुसार पुजारी का कोई झगड़ा नहीं था तो फिर किससे?
4. या फिर – क्या यह केवल ‘दहशत फैलाने’ का तरीका था?
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मंदिर की सुरक्षा एक खुला प्रश्न: इस घटना ने उस विश्वास की भी हत्या की है, जो देवस्थलों की सुरक्षा को लेकर अब तक कायम था। कभी किसी ने नहीं सोचा था कि मंदिर में सोया पुजारी मर सकता है। अब गांवों के मंदिर भी असुरक्षित हैं। पंचायत स्तर पर कोई निगरानी नहीं, कोई कैमरा नहीं, कोई रात्रि सुरक्षा नहीं। क्या अब शिव की चौखट पर भी ताला डालने का समय आ गया है?
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मीडिया, नेता और समाज सब मौन इस जघन्य हत्या पर ना कोई जनप्रतिनिधि आया, ना कोई प्रशासनिक अधिकारी ने संवेदना व्यक्त की। मीडिया की प्राथमिकताओं में यह खबर ‘टॉप हेडलाइन’ नहीं बन पाई। क्या कारण है? क्या यह खबर इसलिए नहीं दिखाई जा रही क्योंकि मृतक कोई 'VIP' नहीं था? राजनीतिक गलियारों में भी कोई हलचल नहीं। और गांव? गांव भी अब सन्नाटा ओढ़े बैठा है।
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एक पुजारी की हत्या नहीं, एक विचार की हत्या शंभू सिंह की मौत, एक विचार की मौत है। वो विचार जो कहता है कि धर्म, प्रेम, सेवा और निष्ठा से बड़ा कुछ नहीं। जब ऐसे विचारों को गोली मार दी जाती है, तब समाज में केवल कानून नहीं मरता मानवता मरती है।
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न्याय की मांग और हमारी जिम्मेदारी: "मिथिला जन जन की आवाज़" मांग करता है अपराधियों को 15 दिनों के भीतर गिरफ़्तार किया जाए। मंदिरों में रात्रिकालीन सुरक्षा की व्यवस्था हो। धार्मिक स्थलों को भी 'संवेदनशील जोन' में शामिल किया जाए। और सबसे अहम, इस हत्या को सामान्य न मानते हुए सांस्कृतिक अपमान माना जाए। आरती जो अब न्याय के लिए उठी है। पुजारी शंभू सिंह अब नहीं हैं। लेकिन उनकी भस्म से उठती वो अंतिम आरती हवा में तैर रही है जो भगवान से नहीं, सरकार और समाज से न्याय मांग रही है।
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"हे शिव! तुम्हारे द्वार पर बहा खून अब एक प्रतीक है या तो इस समाज को जगा देगा, या इतिहास में एक और पवित्र हत्या का अध्याय जोड़ देगा।" "मिथिला जन जन की आवाज" इस मामले की सतत निगरानी करेगा। यदि आपके पास इस हत्या से जुड़ी कोई जानकारी है, तो आप हमसे गोपनीय रूप से संपर्क कर सकते हैं। शंभू सिंह को भावपूर्ण श्रद्धांजलि। आप मरे नहीं हैं, आप अब एक मशाल हैं जो हमें अंधेरे से लड़ने की प्रेरणा देती है।