"धरती पर देवत्व का स्पर्श, और छात्रों की आँखों में भविष्य की चमक: दरभंगा पब्लिक स्कूल में मिहिर मोहन का संगोष्ठी संवाद — जब तकनीक ने चेतना को झकझोरा"
जब सुबह की पहली किरणें दरभंगा पब्लिक स्कूल की प्राचीरों को छूती हैं, तो लगता है जैसे ज्ञान की देवी स्वयं अपना आँचल बिछाकर इन नन्हे बुद्धिजीवियों को आशीर्वाद दे रही हों। इसी पावन परिसर में, जहाँ कभी हमने भी किताबों के बोझ से नहीं, सपनों की उड़ानों से थकान पाई थी — आज एक ऐतिहासिक क्षण ने जन्म लिया. पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा:- जब सुबह की पहली किरणें दरभंगा पब्लिक स्कूल की प्राचीरों को छूती हैं, तो लगता है जैसे ज्ञान की देवी स्वयं अपना आँचल बिछाकर इन नन्हे बुद्धिजीवियों को आशीर्वाद दे रही हों। इसी पावन परिसर में, जहाँ कभी हमने भी किताबों के बोझ से नहीं, सपनों की उड़ानों से थकान पाई थी — आज एक ऐतिहासिक क्षण ने जन्म लिया।
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जब प्रेरणा ने पंख फैलाए: दिल्ली मोड़ स्थित दरभंगा पब्लिक स्कूल के सभागार में आज कोई साधारण दिन नहीं था। यह वह दिन था, जब तकनीक का सूर्य ज्ञान के आकाश में उगता दिखाई दिया। अवसर था ऑटोवर्स मोबिलिटी के संस्थापक, देश के अग्रणी तकनीकी उद्यमी, और आईआईटी के प्रखर पूर्व छात्र श्री मिहिर मोहन के आगमन का — एक ऐसा नाम, जिसने विज्ञान को सिर्फ प्रयोगशाला का विषय नहीं, बल्कि जीवन की भाषा बना दिया है।
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स्वागत की गरिमा, और विचारों का समर्पण: विद्यालय के प्राचार्य डॉ. मदन कुमार मिश्रा ने जब श्री मोहन को पुष्पगुच्छ और सम्मान-पत्र भेंट किया, तो वह क्षण केवल स्वागत का नहीं, बल्कि उस परंपरा का था जहाँ गुरु और ज्ञानी का संगम होता है। डॉ. मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहा — "आज हमारे छात्र उस ज्ञान-दीप से आलोकित हो रहे हैं, जिसकी रोशनी सीमाओं से परे है।"
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जहाँ कोडिंग कविता बनी, और रोबोटिक्स सपना: श्री मिहिर मोहन जब बोले, तो लगता था मानो तकनीक की किताबों ने स्वर पकड़ लिया हो। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, कोडिंग, ऑटोमेशन — इन शब्दों ने छात्रों के मन में जिज्ञासा की लौ जलाई, जो अब बुझने वाली नहीं थी। उन्होंने कहा,"तकनीक केवल यंत्र नहीं है, यह मनुष्य की कल्पना का विस्तार है। यह वह सेतु है, जो वर्तमान को भविष्य से जोड़ता है।"
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और फिर उन्होंने वह बात कही, जो सीधे हृदय में उतर गई "असफलता केवल विराम है, पूर्णविराम नहीं।" उन्होंने बताया कि हर उस गिरावट में एक शक्ति छिपी होती है, जो व्यक्ति को उसकी सीमाओं से परे ले जाती है। छात्रों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए उनका हर शब्द मानो अनुभव का अमृत था।
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एक सत्र, जिसने चेतना को झकझोरा: छात्रों ने प्रश्न पूछे रोबोटिक्स से लेकर स्टार्टअप्स तक, और श्री मोहन ने उत्तर दिए — अनुभव से सिंचे हुए, यथार्थ से जुड़े, और भविष्य की ओर इशारा करते हुए। यह संवाद केवल एक शैक्षणिक अभ्यास नहीं था, यह तो एक दीपदान था, आत्मा को दिशा देने का।
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विचारों की दीवार पर उग आया विश्वास: डॉ. विशाल गौरव, विद्यालय प्रबंधन के सम्मानित सदस्य, ने कहा "आज के युग में छात्र को केवल पाठ्यक्रम नहीं, प्रेरणा चाहिए। और मिहिर मोहन जैसे व्यक्तित्व उस प्रेरणा की जीवंत मूर्ति हैं।"
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और अंत में... एक मौन जो गूंज गया: कार्यक्रम का समापन उप-प्राचार्य श्री दिब्येन्दु बिस्वास के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। किंतु उस क्षण, जब सभागार में तालियों की गूंज थी, कहीं न कहीं हर छात्र के भीतर एक नया सपना आकार ले चुका था। दरभंगा पब्लिक स्कूल आज फिर एक बार अपने छात्रों के भविष्य को उँगलियों पर नहीं, हृदय की धड़कनों में रखकर दिशा दे रहा है। और हम — जो कभी इसी प्रांगण में बैठे थे — गर्व से कह सकते हैं, "हम उस भूमि से हैं, जहाँ विचारों को पंख मिलते हैं, और सपनों को साहस।"