"दरभंगा में कानून को दी खुली चुनौती: अब या तो विश्वविद्यालय थाना के थानाध्यक्ष सुधीर कुमार इतिहास बनाएं या बदमाश भविष्य! विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र में बढ़ते अपराधों पर एक ललकारती रिपोर्ट"

समय की गति तेज है, पर थानों की रफ्तार धीमी। विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र में अपराध की जड़ें अब उस बरगद के पेड़ की तरह फैल गई हैं, जिसके नीचे कोई बैठना नहीं चाहता, पर जिसकी छाया सबकी मजबूरी बन चुकी है। लक्ष्मीसागर, कादिरावाद, राज कैंपस, रामबाग गेट ये केवल नाम नहीं, अब ये प्रतीक बन चुके हैं उस सिस्टम के, जो या तो सो रहा है, या आँखें बंद कर देख रहा है. पढ़े पुरी खबर.......

"दरभंगा में कानून को दी खुली चुनौती: अब या तो विश्वविद्यालय थाना के थानाध्यक्ष सुधीर कुमार इतिहास बनाएं या बदमाश भविष्य! विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र में बढ़ते अपराधों पर एक ललकारती रिपोर्ट"
दरभंगा में कानून को दी खुली चुनौती: अब या तो विश्वविद्यालय थाना के थानाध्यक्ष सुधीर कुमार इतिहास बनाएं या बदमाश भविष्य! विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र में बढ़ते अपराधों पर एक ललकारती रिपोर्ट

दरभंगा। समय की गति तेज है, पर थानों की रफ्तार धीमी। विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र में अपराध की जड़ें अब उस बरगद के पेड़ की तरह फैल गई हैं, जिसके नीचे कोई बैठना नहीं चाहता, पर जिसकी छाया सबकी मजबूरी बन चुकी है। लक्ष्मीसागर, कादिरावाद, राज कैंपस, रामबाग गेट ये केवल नाम नहीं, अब ये प्रतीक बन चुके हैं उस सिस्टम के, जो या तो सो रहा है, या आँखें बंद कर देख रहा है।

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वो दोपहर, जब लक्ष्मीसागर की हवाएं बारूद से महकीं: 7 मई की दोपहर थी। स्कूल से लौटते बच्चे, साइकिल पर दूध वाले, और ज्ञान भारती पब्लिक स्कूल के आसपास चाय की दुकानों पर बैठे बुज़ुर्ग सब कुछ आम दिनों की तरह ही चल रहा था। पर तभी, अचानक उस दोपहर की छाती चीरती आवाज़ आई "धाँय! धाँय!" और लक्ष्मीसागर मोहल्ले की चाय की केतली के भाप में खून की गंध घुल गई।

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शिवम पासवान एक नौजवान, जिसने हाल ही में रिमांड होम की दीवारों से मुक्ति पाई थी उस दिन चाय पीकर लौट रहा था। शायद नई शुरुआत की उम्मीदों से भरा हुआ। पर नियति को जैसे उसकी कहानी अधूरी ही रखनी थी। मोहल्ले के कुछ युवक, जो शराब के अवैध कारोबार से जुड़े बताए जा रहे हैं, उसे घेरते हैं। 500 रुपये मांगते हैं। और इंकार के जवाब में मिलती है उसे दो गोलियां – एक पेट को छूकर निकलती है, दूसरी उसकी बांह की हड्डियों को तोड़ देती है। पर असल सवाल ये नहीं कि गोली किसे लगी। सवाल ये है गोलियां चल कैसे रही हैं?

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विश्वविद्यालय थाना: जहाँ शिकायतें तो दर्ज होती हैं, पर इंसाफ खो जाता है यह कोई पहली वारदात नहीं थी। अगर आप विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र के नागरिक हैं, तो शायद आप हफ्ते में एक बार “बाइक चोरी”, “मोबाइल झपटमारी”, या “गोलियां चलने” की खबर पढ़ते ही होंगे। किसी के घर के बाहर से बाइक गायब, किसी छात्रा से बदसलूकी, कहीं नशे के सौदागर खुलेआम शराब बेचते हुए। और इन सबके बीच, एक थाने की चुप्पी जो सिर्फ "जाँच जारी है" तक सीमित हो गई है। थाना, जो कभी न्याय का पहला द्वार माना जाता था, अब एक ऐसी जगह बन गया है जहाँ पीड़ित जाते हैं, और लौटते हैं शंका, संशय और असंतोष लेकर।

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बदमाश बेखौफ हैं, क्योंकि उन्हें पता है पुलिस अब ‘माहौल देख रही है’ लक्ष्मीसागर की घटना के बाद कई बातें निकलकर सामने आईं। घायल शिवम का बयान सिर्फ उसके हमलावरों की पहचान नहीं कराता, बल्कि उस सामाजिक तानेबाने की भी पोल खोलता है, जिसमें बदमाश ट्रेनों की पैंट्री कार में विदेशी शराब लाते हैं, बेचते हैं, और विरोध करने पर जान लेने में भी पीछे नहीं हटते।स्थानीय लोग कहते हैं कि बदमाशों ने पाँच राउंड फायरिंग की, पुलिस कहती है "दो गोली चली है"। यह अंतर सिर्फ गिनती का नहीं है, यह अंतर है संवेदनशीलता और संवेदनहीनता का।

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सवाल वही पुराना अपराध कैसे रोकें? जवाब अब नया चाहिए “सुधीर कुमार अब एक्शन में आएं!” अब समय आ गया है कि विश्वविद्यालय थाना के प्रभारी थानाध्यक्ष सुधीर कुमार को 'कार्रवाई' शब्द की परिभाषा बदलनी होगी। यह क्षेत्र अब दया नहीं, दंड मांगता है। दरभंगा के लोग अब रिपोर्ट नहीं, परिणाम देखना चाहते हैं। सुधीर कुमार, जिनकी ईमानदारी और सख्ती के चर्चे एक समय तक आम थे, अब एक नई चुनौती के सामने खड़े हैं। अब उन्हें केवल केस दर्ज नहीं करना है, उन्हें अपराधियों के रूट को जड़ से काटना है। यह मोहल्ला अब थानाध्यक्ष की परीक्षा बन चुका है। उन्हें यह साबित करना होगा कि "पुलिस केवल बुलेट से नहीं, बुलंद इरादों से भी डर पैदा कर सकती है।"

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छोटे-छोटे गिरोह, बड़ी-बड़ी साज़िशें विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र में नशे का साम्राज्य: जो मोहल्ला दरभंगा विश्वविद्यालय के नाम पर पहचाना जाना चाहिए, वहाँ अब युवा नशे की गिरफ्त में हैं। शराब, गांजा, नशे की गोलियाँ सब खुलेआम बिक रहा है। और यह सब बिना प्रशासनिक शह के संभव नहीं। मोहल्ले के हर कोने पर गलीबाज़ी करने वाले कुछ चेहरे रात में तस्कर बन जाते हैं। शिवम की गोलीबारी की घटना केवल उसकी चोट नहीं, बल्कि इस नशे के साम्राज्य का वह छिपा हुआ दरवाज़ा है, जिसे अब खोलना जरूरी हो गया है। कई बुज़ुर्ग कहते हैं "बेटा, अब तो अंधेरा ही दिखता है इस मोहल्ले में, पहले बच्चे बाहर खेलते थे, अब माँ-बाप दरवाज़ा बंद कर रखते हैं।" क्या यही दरभंगा है? क्या यही वह मिथिला भूमि है, जहाँ विद्वता, शांति और संस्कृति की बातें की जाती थीं?

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शायद नहीं। थानाध्यक्ष सुधीर कुमार, अब यह समय है जब आप अपनी टीम को अलर्ट नहीं, एक्टिव बनाइए। सादा लिबास में गश्ती दल तैयार कीजिए, हर मोहल्ले में 'क्राइम मैपिंग' कराइए, हर बाइक चोर, शराब तस्कर, और असलहेबाज़ के घर दस्तक दीजिए। दरभंगा का विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र अब प्रयोगशाला नहीं, रणक्षेत्र बन चुका है जहाँ आपको निर्णायक भूमिका निभानी होगी।

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लक्ष्मीसागर में जो हुआ, वह केवल एक युवक की पीड़ा नहीं है, वह एक पूरे सिस्टम की नाकामी है। एक प्रशासन की लाचारगी, एक पुलिस व्यवस्था की ढीली पकड़, और समाज की चुप्पी। पर अब यह चुप्पी तोड़नी होगी। अब सिर्फ एफआईआर से बात नहीं बनेगी। अब सुधीर कुमार को अपराधियों की नींद उड़ानी होगी। वरना कल फिर कोई शिवम गोली खाएगा... फिर कोई माँ डीएमसीएच की बेंच पर रोएगी... और फिर कोई पत्रकार कलम से खून की कहानी लिखेगा...